Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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और प्रचण्ड वायु क्षण में ही नदी के पानी को सुखा देवे तो समझो राजा का वध हो जायगा ॥१२१॥
देवताऽतिथि भृत्येभ्योऽदत्वा तु भुञ्जते यदा।
यदा भक्ष्याणि भोज्यानि तदा राजा विनश्यति॥१२२ ।। (देवताऽतिथि भृत्येभ्यो) देवताओं की पूजा के बिना अतिथि को भोजन न देकर नौकरों को (अदत्वा) भोजन न देकर (यदा भक्ष्याणि भोज्यानि भुञ्जते) जो भक्ष्य भोजन है उसको स्वयं भोजन करता है तो (तदा) तब वह (राजाविनश्यति) राजा नाश हो जाता है।
भावार्थ-अगर राजा भोजन करने योग्य भोजन के पदार्थों को अतिथि की पूजा के बिना देवताओं की पूजा के बिना, नौकरों को भोजन दिये बिना ही स्वयं भोजन कर लेता है तो समझो वह राजा मारा जायगा ।। १२२ ।।
द्विपदाश्चतुःपदा वाऽपि यदाऽभीक्ष्णं रदन्ति वै।
परस्परं सुसम्बद्धा सा सेना बध्यते परैः॥१२३ ।। (द्विपदाश्चतुःपदा) दो पाँव वाले मनुष्य चार पाँव वाले पशु (वाऽपियदा) जब भी (परस्परंसुसम्बद्धा) परस्पर मिलकर (अभीक्ष्णंरदन्तिवै) वे प्रतिक्षण रोते हुए दिखाई पड़े तो (सा) वो (सेना) सेना (बध्यतेपरैः) बन्धन को प्राप्त हो जाती है।
भावार्थ-चार पाँव वाले पशु दो पाँव वाले मनुष्य परस्पर एक साथ मिलकर रोवे और कठोर शब्द करे तो समझो सेना बन्धन को प्राप्त हो जायगी॥ १२३ ।।
ज्वलन्ति यस्य शस्त्राणि नमन्ते निष्क्रमन्ति बा।
सेनायाः शस्त्रकोशेभ्य: साऽपि सेना विनश्यति॥१२४॥ (यस्य) जिसके (शस्त्राणि) शस्त्र (ज्वलन्ति) जलने लगे (वा) वा (सेनायाः शास्त्रकोशेभ्य:) सेना के शस्त्रकोष से (निष्क्रमन्ति) स्वयं निकलने लगे, (नमन्ते) नमने लगे तो (साऽपि) वो भी (सेनाविनश्यति) सेना नाश हो जाती है।
भावार्थ-जिस सेना के शस्त्र अपने-आप ही जलने लगे अपने-आप ही कोष से बाहर निकलने लगे, और नम्र होने लगे तो समझो उस सेना का विनाश हो जायगा ।। १२४ ।।