Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ राजा के प्रयाण समय में यदि उत्पात और विकार दिखलाई पड़े तो समझो उसका चतुरंग सेना में औत्पातिक फल होता है ॥ ११८ ॥
इला
ये
मेरी निबध्यन्ते
३०७
यथोचिताः । प्रयातानां विस्वरा वाहनाश्च ये ॥ ११९ ॥
( प्रयाणे) प्रयाण के समय में (ये) जो (भेरीशत मृदङ्गाश्च) भेरी, शंख, मृदग आदि के शब्द ( यथोचिता) यथोचित है ( प्रयातानां ) सैनिकों के ( वाहनाश्च ) वाहन आदि भी ठीक हो ( विस्वरा) विश्वर नहीं करते हो तो ( निबध्यन्ते) समझो सब क्षेम कुशल होगा उसका फल शुभ है।
भावार्थ — सेना के प्रयाण समय में जो भेरी, शंख, मृदगादि का शब्द यथोचित हो विश्वर नहीं हो और सैनिकों के वाहनादि भी ठीक हो तो समझो उसका फल शुभ होता है ॥ ११९ ॥
यद्यग्रतस्तु
प्रयायिणाम् ।
प्रयायेत् काकसैन्यं विस्वरं निभृतं वाऽपि येषां विद्याच्चमूवधम् ॥ १२० ॥ (प्रयायिणाम् ) प्रयाण करने वाली सेना के ( यद्यग्रतस्तु) आगे-आगे (काकसैन्यं) कौओं की सेना (प्रयायेत्) जावे और ( वाऽपि ) वह भी (विस्वरंनिभृतं) विस्वर और कठोर शब्द करे तो ( येषां ) उसकी (चमू) सेना का ( वधम् ) वध ( विद्यात्) जानो । भावार्थ — यदि सेना के आगे-आगे कौओं की पंक्ति विश्वर और कठोर शब्द करती हुई जावे तो समझो उस सेना का वध हो जायगा || १२० ॥
राज्ञो यदि प्रयातस्य गायन्ते ग्रामिका: पुरे | चण्डानिलो नदीं शुष्येत् सोऽपि बध्येत पार्थिवः ।। १२१ ॥
(यदि राज्ञो प्रयातस्य) यदि राजा के प्रयाण करते समय (पुरे) नगर के (ग्रामिका:) ग्रामीण लोग (गायन्ते) भजन गाते हुये और वह भी रोने रूप गाते हैं ( चण्डानिलो नदीं शुष्येत्) चण्डवायु नदी को शुष्क कर दे तो समझो ( सोऽपि बध्येत् पार्थिवः) वह भी राजा का वध करवा देता है।
भावार्थ — राजा प्रयाण समय में यदि ग्रामवासी लोग रोते हुए भजन गायें