Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
जायते) आँख का रोग उत्पन्न हो जाय तो (अचिरेणैव कालेन्) थोड़े ही काल में (साऽग्निना दह्यते चमू:) वह सेना अग्नि में जलने लगेगी।
भावार्थ-युद्ध करने वाले राजा की सेना में सैनिकों यदि आँख में रोग हो जाय तो वह सेना थोड़े ही समय में अग्नि के उपद्रव को प्राप्त हो जायगी, अग्नि से जलकर नष्ट हो जाएगें।। ११२।।
व्याधयश्च प्रयातानामतिशीतं विपर्ययेत्।
अत्युष्णं चाति रूक्षं च राज्ञो यात्रा न सिध्यति || ११३॥ (प्रयातानाम्) प्रयाण करने वाले राजा को (अतिशीत) अत्यन्त शीत (व्याधयश्च) और व्याधियाँ (विपर्ययेत्) विपरीत (अत्युष्णं) अति उष्णता (चातिरूक्षं) अति रूक्षता हो जाय तो (राज्ञो यात्रा न सिध्यति) राजा की यात्रा सिद्ध नहीं होती है।
भावार्थ-युद्ध के लिये प्रयाणार्थिको रास्ते में ही यदि व्याधियों उत्पन्न हो जाय विपरीत अतिशीत अति उष्णता, अति रूक्षता हो जाय तो समझो राजा की यात्रा सफल नहीं होगी॥११३ ।।।
निविष्टो यदि सेनाग्निः क्षिप्रमेव प्रशाम्यति।
उपवह नदन्तश्च भज्यते सोऽपि वध्यते॥११४ ॥ (यदि सेनाग्निः निविष्टो) यदि सेना की अग्नि (क्षिप्रमेव प्रशाम्यति) शीघ्र ही जलती हुई नष्ट हो जाय तो (उपवानदन्तश्च) अच्छा और शान्त व्यक्ति भी (भज्यते) भागते हुए (सोऽपि) वो भी (वध्यते) नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ—यदि सेना की अग्नि जलती हुई शीघ्र शान्त हो जाय तो अच्छा और शान्त भागता हुआ व्यक्ति मारा जायगा अन्य की तो बात ही क्या ।। ११४ ।।
देवो वा यत्र नो वर्षेत् क्षीराणां कल्पना तथा।
विद्यान्महद्भयं घोरं शान्तिं तत्र तु कारयेत्॥११५॥ (देवो वा यत्र नो वर्षे) जहाँ जल की वर्षा नहीं होती हो (क्षीराणां कल्पना तथा) और मात्र पानी की कल्पना ही रह जाती हो तो (महद्भयं घोरं विद्याद) वहाँ महान भय उपस्थित होगा, (शान्तिं तत्र तु कारयेत्) इसलिये वहाँ पर शान्ति करनी चाहिये।