Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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नवमोऽध्यायः
(यदा) जब (मेदिनी) पृथ्वी (भस्म) राख (पांशु) धूलि के (रजस्कीर्णा) रज कणों से व्याप्त (भवति) होती है तो (तदा) तब (सर्वत्यागं) सब कर्तव्यों का त्याग (कृत्वा) करके (धान्य संग्रह) धान्यों का संग्रह (कर्तव्यो) करना चाहिये।
भावार्थ- जब पृथ्वी भस्म, धूलि के रज कणों से व्याप्त हो जाती है आकाश में कहीं बादल मेघ आदि शुभ निमित्त नहीं दिख रहे हो तो अवश्य ही दुर्भिक्ष होगा, ये सब लक्षण अनावृष्टि के कारण है इसलिये आचार्य यहाँ पर कह रहे हैं कि धर्मात्मा जीवों को दूसरा सब कार्य छोड़कर अपना जीवन और परिवार की रक्षा के लिये धान्यो का संग्रह करना चाहिये ।।२१11
विद्रवन्ति च राष्ट्राणि क्षीयन्ते नगराणि च।
श्वेतास्थिर्मेदिनी ज्ञेया मांस शोणितकर्दमा।। २२॥ (राष्ट्राणि च विद्रवन्ति) राष्ट्रका नाश होता है, (च) और (नगराणि) नगरों का (क्षीयन्ते) क्षय होता है, (श्वेतास्थिर्मेदिनी) पृथ्वी सफेद हड्डीयों से भर जाती है, (मांसशोणित कर्दमा) और मांस, खून की कीचड़ हो जाती है ऐसा (ज्ञेया) जानना चाहिये।
भावार्थ-यदि नैर्ऋत्य कोण की वायु आषाढ़ पूर्णिमां को चले तो समझो उस देश का नाश हो जाता है, नगरों का क्षय हो जाता है धरती हड्डीयों से भर जाती है और मांस खून से पृथ्वी पर कीचड़ हो जाता है ऐसा भयंकर समय ये वालु लाकर उपस्थित कर देती है।। २२ ॥
___ वायव्यकोण की वायु का फल आषाढीपूर्णिमायां तु वायुः स्यादुत्तरापरः । मक्षिकादंश मशका जायन्ते प्रबलास्तदा ॥२३॥ मध्यम क्वचिदुत्कृष्टं वर्ष सस्यं च जायते।
नूनं च मध्यम किञ्चिद् धान्यार्थ तत्रनिर्दिशेत् ॥ २४ ॥ (वायु:) वायु यदि (आषाढ़ीपूर्णिमायां) आषाढ़ी पूर्णिमां में, (उत्तरापरः) वायव्यकोणकी (स्याद्) हो (तु) तो (तदा) तब (दंशमशका) दंश, मच्छर (मक्षिकां)
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