Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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( मङ्गलार्थिन: ) मलार्थि (नग्नं प्रव्रजितं दृष्ट्वा ) नग्न दीक्षित मुनि को देखा तो ( मङ्गलं ) समझो उसका मंगल ही होगा। (यस्तु) और (तस्य) जिसको (कुर्याद मंत्र) मंगल रूप नहीं है (सोऽपि न मंडलम् ) उसको मङ्गल नहीं होता है।
भावार्थ-नग्न दिगम्बर साधुओं का रूप प्रतिक्षण मंगल रूप होता है, जो नग्न साधुओं से ग्लानि करके देखता है उसके लिये अमंगल रूप ही होगा, क्योंकि उसको पाप बंध होगा, और ग्लानि का पाप कष्टदायक होता है ॥ ७६ ॥
कुर्यादाकृष्टो
पीडितोऽपचयं ताडितो
यदि प्रयाण काल में ( पीडितोऽपचयं कुर्याद्) पीड़ित व्यक्ति दिखाई पड़े तो समझो हानि होगी, (आक्रुष्टो वधबन्धनम् ) चीखता हुआ दिखे तो वध बन्धन होगा, ( ताडितो मरणं दद्याद्) किसीके द्वारा ताडित व्यक्ति दिखे तो मरण को देने वाला होता है (तथा) तथा ( रुदितं) रोता हुआ दिखे तो त्रासित होगा ।
भावार्थ — प्रयाण करने वाले राजा के आगे पीड़ित व्यक्ति सामने पड़े तो हानि होगी, बहुत ही चिल्लाता हुआ दिखे तो समझो वध बन्धन होगा, अगर ताडित व्यक्ति दिखे तो समझो मरण होगा, रोता हुआ दिखे तो त्रास का कष्ट भोगना पड़ेगा ।। ७७॥
वधबन्धनम् । मरणं दद्याद् वासितो रुदितं तथा ॥ ७७ ॥
पूजितः सानुरागेण लाभं राज्ञः समादिशेत् । तस्मात्तु मङ्गलं कुर्यात् प्रशस्तं साधुदर्शनम् ॥ ७८ ॥ (सानुरागेण) अनुरागपूर्वक (पूजितः ) पूजित व्यक्ति ( राज्ञः ) राजा को ( समादिशेत् ) दिखाई पड़े तो (लाभ) लाभ होता है (तस्मात् मंत्रलं कुर्यात् ) इसलिये मंङ्गल करना चाहिये, क्योंकि ( साधुदर्शनम् प्रशस्तं ) साधुओं का दर्शन प्रशस्त माना गया है।
भावार्थ – अनुरागपूर्वक पूजित व्यक्ति राजा के प्रयाण समय में दिखलाई पड़े तो समझो मंगल होने वाला है। राजा को कोई न कोई लाभ अवश्यक होगा, इसलिये आनन्द मनाना चाहिये। यात्रा काल में साधु दर्शन मंगलप्रद है॥ ७८ ॥