Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
२९६
( अभिद्रवन्ति) आक्रमण करे (वा) वा (श्व) कुत्ता, (मानुष) मनुष्य (शृगाला ) भृगाल सेना का पीछा करे तो (सा) वो (सेना) सेना (वध्यते परैः) बांधी जाती है।
भावार्थ — जिस सेना पर कौआदि विस्वर करते हुए बार-बार आक्रमण करे अथवा कुत्ता, शृगाल, मनुष्य उस सेना का पीछा कर तो समझो उस सेना का शत्रु राजा बन्ध में डाल देगा ।। ८२ ।।
भग्नं दग्धं च शकटं यस्य राज्ञः प्रयाविणः । हेवोपसृष्टं जानीयात्र तंत्र गमनं शिवम् ॥ ८३ ॥
(यस्य राज्ञः ) जिस राजा के ( प्रयायिणः) प्रयाण समय में ( शकटं ) घाटी आदि (भग्नं) टूट जाय (च) और ( दग्धं) जल जाय तो, (देवोपसृष्ट) देवकृत उपसर्ग है ऐसा ( जानीयात्) जानना चाहिये, (तत्र गमनं न शिवम् ) उस राजा का गमन शिवप्रद नहीं है।
भावार्थ - राजा के प्रयाण समय में उसकी सेना की गाड़ी आदि टूट जाय अथवा उसमें आग लग जाय तो समझो यह दिव्य घटना है ऐसे समय में राजा अपनी यात्रा रोक ले आगे न जावे ॥ ८३ ॥
उल्का वा विद्युतोऽभ्रं वा कनकाः
सूर्यरश्मयः ।
स्तनितं यदि वा छिद्रं सा सेना वध्यते परैः ॥ ८४ ॥
राजा के प्रयाण काल में (उल्का) उल्का (वा) वा (विद्युतोऽभ्रं) बिजली अभ्र (वा) वा (सूर्यरश्मयः कनका: ) सूर्य की रश्मि सवर्ण रूप हो और ( स्तनितं यदि वा छिद्रं) स्तनित छिद्र सहित हो तो (सा) वह (सेना) सेना ( वध्यते परैः ) बाँधी जायगी।
भावार्थ राजा के प्रयाण समय में, बिजली, उल्का, अभ्र अथवा सवर्ण वर्ण की सूर्य किरणें हो और बिजली छिद्र सहित हो तो समझो उस राजा की सेना बाँधी जायगी ॥ ८४ ॥
प्रयातायास्तु सेनाया यदि
कश्चिनिवर्तते । चतुःपदो द्विपदो वा न सा यात्रा विशिष्यते ॥ ८५ ॥
( यदि सेनाया ) यदि सेना के ( प्रयातायास्तु) प्रयाण समय में ( कश्चिन् ) कोई