Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ प्रयाण समय में सेना के आगे उल्का छिन्न-भिन्न रूप दिखाई पड़े तो समझो युद्ध से सेना निवृत्त हो जायगी, राजा की यात्रा सफल नहीं होगी॥६९।।
यस्याः प्रयाणे सेनायाः सनिर्घाता मही चलेत।
न तया सम्प्रयातव्यं साऽपि वध्येत सर्वशः॥७॥ (यस्या) जिस (सेनायाः) सेना की (प्रयाणे) प्रयाणके समय (सनिर्घाता) घर्षण करती हुई (महीचलेत्) पृथ्वी कम्पित होती है तो (तया) उसके साथ (न) नहीं (सम्प्रयातव्यं) जाना चाहिये (साऽपि) नहीं तो उनका भी, (सर्वशः) सबके साथ (वध्येत) वध हो जायगा।
भावार्थ-जिस सेना के प्रयाण समय में घर्षण करती हुई पृथ्वी कम्पित होती है तो उस सेना के साथ कभी नहीं जाना चाहिये, नहीं तो उसका भी साथ में अवश्य नाश हो जाया ७ ॥ - अग्रतस्तु सपाषाणं तोयं वर्षति वासवः।
सनामं घोरमत्यन्तं जयं राज्ञश्च शंसति ॥७९॥
यदि सेना के (अग्रतस्तु) आगे (सपाषाणं) ओला सहित (वासव:) मेघ (तोयं) पानी (वति) बरसता है और (राज्ञश्च) राजा का (घोरमत्यन्तं) घोर अत्यन्त (संग्राम) संग्राम होता है और (जयं शंसति) जय में भी संशय होता है।
भावार्थ-यदि सेना की आगे मेघ औला सहित पानी बरसावे तो राजा का अत्यन्त घोर युद्ध होता है और विजय में भी संशय रहता है।। ७१ ।।
प्रतिलोमो यदा वायुः सपाषाणो रजस्करः।
निवर्तयति प्रस्थाने परस्पर जयावहः॥७२॥ (यदा वायु:) जब वायु (प्रतिलोमो) विपरीत (सपाषाणो रजस्करः) पाषाण और धूल सहित चले तो (प्रस्थाने निवर्तयति) प्रस्थान करने वाले राजा को वापस लौटना पड़ता है। (परस्पर जयावहः) परस्पर दोनों की विजय होगी।
भावार्थ-जब वायु विपरीत दिशा की धूल और पाषाण सहित चले तो समझो राजा को युद्ध स्थान से वापस लौटना पड़ता है, और दोनों राजाओं की विजय होती है।।७२ ।।