Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
हैं (क्षेम) क्षेम (सुभिक्ष) सुभिक्ष (आरोग्य) निरोगता बढ़ेगी (सप्तरात्र भयग्रहः) सात रात्रि में भय उत्पन्न होगा, (दैष्ट्रिणो) दांतवाले (मूषकाः) चूहा, (शलभाः) पतंग, (शुकाः) तोता आदि (प्रबला) शक्तिशाली (ज्ञेया) जानना चाहिये।
भावार्थ-धनिष्ठा नक्षत्रमें यदि वर्षा हो तो सत्तावन आढ़क प्रमाण होती है पृथ्वी धान्यो से युक्त हो जाती है, व्यापारादि सब नष्ट हो जाते हैं क्षेम, सुभिक्ष निरोगता हो जाती है और सात रात्रि के अन्दर कोई भय उत्पन्न हो जायगा, दांत वाले प्राणी जैसे चूहे, तोता पतंगादिकका जोर बढ़ जायगा। इनका उपद्रव बढ़ जायगा ।।१०-११।।
खारीस्तु वारिणो विन्द्यात् सस्यानां चाप्युपद्रवम् ।
चौरास्तुप्रवला ज्ञेया न च कश्चिदयग्रहः ॥१२ ।। (वारिणो) यदि वर्षा (खारीस्तु) शतभिखा नक्षत्र में बरसे तो (सस्यानां) धान्यो को (चाप्युपद्रवम्) उपद्रव होता है (च) और (चौरास्तु) चोरोंका उपद्रव भी (प्रबला) शक्ति सहित (ज्ञेया) जानना चाहिये, (कश्चिदयग्रह:) लेकिन कोई अशुभ नहीं होता।
भावार्थ-यदि वर्षा शतभिखा नक्षत्र में बरसे तो धान्यो को क्षति पहुँचती है और चोरों का उपद्रव ज्यादा हो जाता है किन्तु अनिष्ट किसी का भी नहीं होता ।। १२॥
पूर्वाभाद्रपदायां तु यदा मेघ: प्रवर्षति । चतुःषष्टिमाढकानि तदा वर्षति सर्वश: ।। १३ ।। सर्वधान्यानि जायन्ते बलवन्तश्च तस्काराः ।
नाणकं क्षुभ्यते चापि दशरात्रमपग्रहः ॥१४ ।। (यदा) जब (मेघः) बादल (पूर्वाभाद्रपदायां) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रको (प्रवर्षति) बरसते हैं, (तु) तो (चतुःषष्टिमाढकानि) चौषट आढ़कप्रमाण (तदा) तब (सर्वश:) सब जगह (वर्षति) बरसता है। (सर्वधान्यानि जायन्ते) सब प्रकार के धान्य अच्छे होते हैं (तस्कराः) चोर लोग (बलवन्तश्च) बलवान हो जाते हैं, (नाणकं क्षुभ्यते) अधिकारी लोग भी क्षुभित हो जाते हैं (चापि) और भी, (दशरात्रमपग्रहः) दस रात्रि में कोई अशुभ हो जाता है।