Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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दशमोऽध्यायः
भावार्थ-यदि अनुराधा नक्षत्र को वर्षा हो तो सोलह द्रोण प्रमाण वर्षा होगी, सुभिक्ष होगा, क्षेमकुशल होगा, परचक्र सारे के सारे शान्त हो जायगें, दूर जाने वाले यात्री भी वापस लौट आएगे; सर्व मानव धर्मशील हो जायगें, स्थावर जीवों में भी मैत्री भाव प्रकट हो जायगा, सारे के सारे उपद्रव भी शान्त हो जायगें।। ४९-५० ॥
ज्येष्ठायामाढकानि[ दशश्चाष्ठी विनिर्दिशेत्।
स्थलेषु वापयेद् बीजं तदा भूदाह विद्रवम् ।। ५१।। (ज्येष्ठायाम्) ज्येष्ठा नक्षत्रको वर्षा हो तो (दशश्चाष्टौर्यु) अठारह (आढकानि) आढ़क प्रमाण वर्षा (विनिर्दिशेत्) कही गई है (स्थलेषु वापयेद् बीजं) ऊँचे स्थानों पर भी बीज वपन कर देना चाहिये, (तदा) तब (भूदाहविद्रवम्) भूदाह, भूकम्पादिक उपद्रव होते हैं।
भावार्थ-ज्येष्ठा नक्षत्र में वर्षा हो तो अठारह आढ़क प्रमाण वर्षा होती है इसलिये ऊँचे स्थानों पर भी बीजो को बो देना चाहिये, उस वर्ष भूदाह भूकम्पादिक के उपद्रव भी होंगे।। ५१॥
मूलेन खारी विज्ञेया सस्यं सर्व समृद्धयति ।
एकमूलानि पीड्यन्ते वर्द्धन्ते तस्करा अपि ॥५२॥ , (मूलेन) मूल नक्षत्र में यदि वर्षा हो तो (खारी) एक द्रोण प्रमाण वर्षा होती है (सर्व) सर्व (सस्य) धान्योकी (समृद्धयति) समृद्धि (विज्ञेयां) जानना चाहिये (एकमूलानिपीड्यन्तते) योद्धा भी पीडा को प्राप्त होते हैं (तस्करा अपि) चोरों की भी (वर्द्धते) वृद्धि होती है।
भावार्थ-भूल नक्षत्र में यदि वर्षा हो तो एक द्रोण प्रमाण वर्षा होती है, सर्व धान्यो की समृद्धि होती है, योद्धा भी पीडित होते हैं चोरों की वृद्धि होती है।॥५२॥
एतद् व्यासेन कथितं समासाच्छूयतां पुनः ।
भद्रबाहुवचः श्रुत्वा मतमानवधारयेत्॥५३॥ (एतद् व्यासेन कथितं) इस प्रकार विस्तार से वर्णन किया (समासाच्छूयतां