Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
ર૪૪
सप्तनाड़ी चक्रद्वारा वर्षाज्ञान करनेकी विधि - जिस ग्राममें वर्षाका ज्ञान करना हो, उस ग्रामके नामानुसार नक्षत्रका परिज्ञान कर लेना चाहिए। अब इष्टग्रमाके नक्षत्रको उपर्युक्त चक्रमें देखना चाहिए कि वह किस नाड़ीका है। यदि ग्राम नक्षत्रकी सौम्यनाड़ी— आर्द्रा, हस्त, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद हो और उसपर चन्द्रमा शुक्रके साथ हो अथवा ग्राम नक्षत्र, चन्द्रमा और शुक्र ये तीनों सौम्य नाड़ीके हों तथा उसपर पापग्रहकी दृष्टि या संयोग नहीं हो तो अच्छी वर्षा नहीं होती है। पापयोग दृष्टि बाधक होती है। इस विचारके अनुसार चण्डा वायु और अग्नि नाड़ियाँ अशुभ हैं, शेष सौम्या, नीरा, जला और अमृता शुभ हैं।
चक्रका विशेष फल — चण्डानाड़ीमें दो-तीनसे अधिक स्थित हुए ग्रहप्रचण्ड हवा चलाते हैं। समीर नाड़ीमें स्थित होने पर वायु और दहननाड़ी पर स्थित होनेसे ऊष्मा पैदा करते हैं। सौम्यानाड़ी में स्थित होनेसे समता करते हैं, नीरा नाड़ीमें स्थित होने पर मेघोंका सञ्चय करते हैं, जला नाड़ीमें प्रविष्ट होनेसे वर्षा करते हैं तथा वे ही दो - तीनसे अधिक एकत्रित ग्रह अमृता नाड़ीमें स्थित होनेपर अतिवृष्टि करते हैं। अपनी नाड़ीमें स्थित हुआ एक भी ग्रह उस नाड़ीका फल दे देता है । किन्तु मंगल सभी नाड़ियों में स्थित नाड़ीके अनुसार ही फल देता है । पुंग्रहों- गुरु, मंगल और सूर्यके योगसे धुँआ, स्त्री-चन्द्रमा और शुक्र और पुंग्रहोंके योगसे वर्षा तथा केवल स्त्री ग्रहोंके योगसे छाया होती है, जिस नाड़ीमें क्रूर और सौम्यग्रह मिले हुए स्थित हों उसमें जिस दिन चन्द्रमाका गमन हो, उस दिन अच्छी वर्षा होती है । यदि एक नक्षत्र में ग्रहोंका योग हो तो उस कालमें महावृष्टि होती है । जब चन्द्रमा पापग्रहोंसे या केवल सौम्यग्रहोंसे विद्ध हो तब साधारण वर्षा होती है तथा फसल भी साधारण ही होती है।
चन्द्रमा जिस ग्रहकी नाड़ीमें स्थित हो, उस ग्रहसे यदि यह मुक्त हो जावे तथा क्षीण न दिखलाई देता हो तो वह अवश्य वर्षा करता है। तात्पर्य यह है कि शुक्लपक्षकी षष्ठीसे कृष्णपक्षकी दशमी तक्का चन्द्रमा जिस नाड़ीमें हो और नाड़ीका स्वामी चन्द्रमाके साथ बैठा हो या उसे देखता हो तो वह अवश्य वर्षा करता है। चन्द्रमा सौम्य एवं क्रूर ग्रहोंके साथ यदि अमृत नाड़ीमें हो तो वह अवश्य वर्षा