Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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और (ये) जो (पश्चिमे) बादके महीनेमें जल बरसता है (कीर्तिता:) ऐसा कहा गया है, (यदा) जो (प्रशस्तै:) प्रशस्त (लक्षण) लक्षणों से युक्त ऐसे (शेषा) शेष गर्भ (बहूदका) बहुत पानी बरसाते हैं (ज्ञेया:) जानना चाहिये।
भावार्थ—पहले कहे अनुसार गर्भ पहले महीनेमें कम जल बरसाते हैं बाकी आगे के महीनेमें बहुत ही वर्षा करते है, शुभ लक्षणों से युक्त नित्य ही अच्छी वर्षा करते हैं।। ३३ ।।
यानि रूपाणि दृश्यन्ते गर्भाणां यत्र यत्र च।
तानि सर्वाणि ज्ञेयानि भिक्षूणां भैक्षवर्तिनाम् ।। ३४॥ (गर्भाणां) गर्भो का (यानि) जो-जो (रूपाणि) रूप (यत्र यत्र च) जहाँ-जहाँ (दृश्यन्ते) दिखाई दे तो, (तानि) उन, (सर्वाणि) सबको, (भैक्षवर्तिनाम् भिक्षूणां) भिक्षावृत्ति वाले साधुओं को (ज्ञेयानि) जानना चाहिये।
भावार्थ—गर्भो का जो-जो रूप जहाँ-जहाँ दिखे वहाँ-वहाँ के भिक्षावृत्ति वाले साधुओं को शुभाशुभ जान लेना चाहिये ॥ ३४॥
सन्ध्यायां यानि रूपाणि मेघेष्वभ्रेषु यानि च।
तानि गर्भेषु सर्वाणि यथावदुपलक्षयेत् ॥ ३५॥ (यानि) जो (सन्ध्यायां) सन्ध्याओं (रूपाणि) के लक्षण (च) और (मेघेष्वभ्रेषु) मेघों में व बादलों में जानो (तानि) उसी प्रकार (सर्वाणि) सब (गर्भेषु) गर्भोमें (यथावदुपलक्षयेत्) भी उपलक्षित कर देना चहिये ।
भावार्थ-जो सन्ध्याओं के रूप कहे हैं उसी प्रकार मेघोंमें व आकाशमें गों को भी जान लेना चाहिये ।। ३५॥
ये केचिद् विपरीतानि पठ्यन्ते तानि सर्वशः।
लिङ्गानितोय गर्भेषु भयदेषु भवेत तदा ॥३६ ।। (ये केचिद) जो कोई भी (विपरीतानि) विपरीत (लिङ्गानि) चिह्न वाले (तानि सर्वश:) उन सब गर्भीको (पठचन्ते) जानना चाहिये (तदा) तब (तोय) पानी वाले (गर्भेषु) गर्भो में (भयदेषु भवेत्) भय ही उत्पन्न होता है।