Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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द्वादशोऽध्यायः ।
भावार्थ—जो कोई भी विपरीत चिह्न वाले गर्भ है वो सब गर्भ भय को ही उत्पन्न करते हैं॥३६॥
गर्भा यत्र न दृश्यन्ते तत्र विन्द्यान्महद्भयम् ।
उत्पन्ना वा सवन्त्याशु भद्रबाहुवचो यथा ॥ ३७॥ (यत्र) जहाँ पर (गर्भा) गर्भ (न) नहीं (दृश्यन्ते) दिखलाई पड़े तो (तत्र) वहाँ पर (महद्रयम्) महान भय होगा (विन्द्यान्) ऐसा जानो (उत्पन्ना वा स्रवन्याशु) उत्पन्न हुऐ बीज भी नष्ट होते है (यथा) इसी प्रकार (भद्रबाहुवचो) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-जहाँ पर गर्भ दिखाई नहीं पड़े तो समझो वहाँ पर महान भय उत्पन्न होगा, और धान्य अंकुरित होने पर भी वापस नष्ट हो जायगें ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥ ३७॥
निIत्था यत्र गर्भाश्च न पश्येयुः कदाचन ।
तं च देशं परित्यज्य सगर्भ संश्रयेत् त्वरा ॥३८॥ (निर्ग्रन्था) निग्रन्थ साधु (बत्र) जहाँ पर (कदाचन) कभी-भी (गर्भाश्च न पश्येयुः) गर्भो को नहीं देखे तो (तं च) उस (देश) देश को (परित्यज्य) छोड़ कर (त्वरा) शीघ्र ही (सगर्भ) गर्भ सहित देश (संश्रयेत) आश्रय लेवे।
भावार्थ-निर्ग्रन्थ साधु जिस देश में गर्भ नहीं देखे उस देश को अपने संयमकारक्षण करने के लिये शीघ्र छोड देना चाहिये और गर्भ वाले देश का आश्रय पकड़ना चाहिये॥३८॥
विशेष वर्णन इस अध्याय में आचार्यश्री ने गर्भ व वायु का लक्षण व फल कहा है। ये गर्भ किसी भी महीने में दिख सकते है, इन गर्भो के दिखाई पड़ने पर वर्षा का ज्ञान होता है, इस अध्याय में अड़तीस श्लोक ही है किन्तु इतने ही श्लोकों में भी पूर्ण गर्भ व वात का लक्षण आचार्यश्री ने कह दिया है।
किस महीने में कौन-सी तिथि को कौन से वार व नक्षत्र, ऋतुओं में गर्भ दिखे तो उसी प्रकार का उतने ही दिनों में वर्षा या अनावृष्टि होने का ज्ञान कराता है। चारों प्रकार की दिशाओं के मेघ हवा के कारण अदला-बदली करते रहते