Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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तक वर्षा होती रहती है। श्रावणमें कुल आठ दिन, भाद्रपदमें चौदह दिन और आश्विनमें नौ दिन वर्षा होती है। कार्तिक मासमें कृष्णपक्षकी त्रयोदशीसे शुक्लपक्षकी पञ्चमी तक वर्षा होती है। इस चरणका गर्भधारण फसलके लिए भी उत्तम होता है तथा सभी प्रकारके धान्योंकी उत्पत्ति उत्तम होती है। अब नक्षत्रके चतुर्थ चरणमें गर्भ धारणकी क्रिया हो तो १९६वें दिन घोर वर्षा होती है। सुभिक्ष, शान्ति और देशके आर्थिक विकासके लिए उक्त गर्भ धारणका योग उत्तम है। वर्ष में कुल ४ दिन वर्षा होती है। आषाढ़में १६, श्रावणमें १९, भाद्रपदमें १४ आश्विनमें १९, कार्तिकमें १०, मार्गशीर्षमें ३ और माघमें ३ दिन पानी बरसता है। अन्नका भाव सस्ता रहता है। गुड़, चीनी, घी, तेल, तिलहनका भाव कुछ तेज रहता है।
उत्तराभाद्रपदके प्रथम चरणमें मार्गशीर्ष शुक्लपक्षमें गर्भधारण हो तो गर्भधारणके १८८वें दिन वर्षा होती है। वर्षाका आरम्भ आषाढ़ शुक्ल तृतीयासे होता है। वर्षमें ७३ दिन वर्षा होती है। आषाढ़में ६ दिन, श्रावणमें १८ दिन, भाद्रपदमें १८ दिन, आश्विनमें १४, कार्तिक १०, मागशीषम ५ और पौषमें २ दिन वर्षा होती है। द्वितीय चरणमें गर्भधारण होने पर १८५वें दिन वर्षा आरम्भ होती है तथा वर्षमें कुल ६६ दिन जल बरसता है। तृतीय चरणमें गर्भधारण होने पर १८३वें दिन ही जलकी वर्षा होने लगती है। यदि इसी नक्षत्रमें आषाढ़ या श्रावणमें मेघ गर्भ धारण करे तो वें दिन ही वर्षा होती है। चतुर्थचरणमें गर्भधारण करने पर १७८वें दिन वर्षा आरम्भ हो जाती है तथा फसलभी अच्छी होती है। ज्येष्ठमें उक्त नक्षत्रके उक्त चरणमें गर्भधारण हो तो ११वें दिन वर्षा, आषाढ़में गर्भधारण हो तो वें दिन वर्षा, और श्रावणमें गर्भधारण हो तो तीसरे दिन वर्षा आरम्भ होती है। रोहिणी नक्षत्रमें गर्भधारण होने पर अच्छी वर्षा होती है तथा वर्षमें कुल ८१ दिन जल बरसता है। आषाढ़में १२ दिन, श्रावणमें १६; भाद्रपदमें १८, आश्विनमें १४, कार्तिकमें ५, मार्गशीर्षमें ७, पौषमें ३ और माघमें ६ दिन पानी बरसता है। फसल उत्तम होती है। गेहूँकी उत्पत्ति विशेषरूपसे होती है।
इति श्री श्रुत केवली दिगम्बराचार्य श्रीभद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का विशेष वर्णन करने वाला गर्भ व वायुओं के लक्षण फल आदिको कहने वाला बारहवां अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्तः।
(इति द्वादशोऽध्यायः समाप्तः)