Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
२८६
भावार्थ-यदि अग्नि, स्निग्ध दिखे, थोड़ा-थोड़ा शब्द करे, धूम्र युक्त हो, गौर वर्ण वाली हो ऋजु हो अवच्छिन्न रूप प्रदक्षिणा करती हुई सेना के चारों तरफ दिखाई पड़े तो समझो सेना के सेनानी की विजय होगी॥५१॥
कृष्णा वा विकृतो रूक्षो वामवर्तो हुताशनः।
हीनाथूिमबहलः स प्रस्थाने भयावहः॥५२॥ राजा के (प्रस्थाने) प्रस्थान समय में (हुताशन:) अग्नि (कृष्णो) काले रूपमें (विकृतो) विकृत होती हुई (वा) और (रूक्षो) रूक्ष होकर (वामवर्तो) वाम भाग में (हीनाधूिमबहल:) थोड़ी अग्नि और बहुत धूएँ के साथ दिखाई पड़े तो समझो (स) वह (भयावहः) राजा को भय उत्पम करेगी।
भावार्थ-युद्ध के लिये राजा प्रस्थान कर रहा हो, उस समय में यदि अग्नि काली हो, विकृत हो, रूक्ष हो, वाम भाग से जाती हुई दिखाई पड़े और थोड़ी अग्नि ज्यादा धुआँ दिखे तो समझो उस राजा को भय उत्पन्न होगा॥५२॥
सेनाग्रे हूयमानस्य यदि पीता शिखा भवेत्।
श्यामाऽथवा यदा रक्ता पराजयति सा चमूः॥५३॥ (सेनाग्रे) सेना के आगे (यदि) यदि (हूयमानस्य) अग्नि (पीता) पीली (शिखा) शिखावाली (भवेत्) होती है (अथवा) अथवा (श्यामा) काली हो, (रक्ता) लाल हो (यदा) तब (स) वह (चमू:) सेना की (पराजयति) पराजय होती है।
भावार्थ-सेना के आगे यदि अग्नि जलती हुई पीली शिखावाली हो या काली व लाल शिखा से युक्त हो तो समझो राजा की सेना की पराजय ही है।! ५३ ।।
यदि होतुः पथे शीघ्रं ज्वलत्स्फुल्लिङ्गमग्रतः।
पार्श्वत: पृष्ठतो. वाऽपि तदैवं फलमादिशेत्॥ ५४॥ (यदि) यदि (पथे) मार्ग में (होतुः) हवन कर रहा हो उस अग्नि से (ज्वलत्स्फुल्लिङ्गमग्रत) जलते हुए स्फुलिङ्ग आगे पड़ते हुए दिखाई दे अथवा, (पार्श्वत:) बगल में व (पृष्ठतो) पीछे गिरते हुए दिखाई पड़े तो (तदैवं फलमादिशेत्) उसी प्रकार का फल जानो।