Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
२८०
भावार्थ-जैसे राजा चतुरङ्ग सेना से युक्त होने पर भी निमित्त ज्ञानी के बिना युद्ध में कभी-भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है।। ३२ ।।
तस्माद्राजा निमितज्ञ अष्टाङ्गकुशलो वरम्।
विभृयात् प्रथमं प्रीत्याऽभ्यर्थयेत् सर्व सिद्धये ॥३३॥ (तस्माद्राजा) इसलिये राजा को (प्रथम) पहले (प्रीत्या) प्रीति से (सर्व सिद्धये) सर्व कार्य की सिद्धि के लिये (अष्टाङ्ग निमितज्ञ) अष्टाङ्ग निमित्तों में (वरम्) श्रेष्ठ हो (कुशलो) कुशल हो उसको (अभ्यर्थयेत्) प्रार्थना पूर्वक (विभृयात्) नियुक्त करे।
भावार्थ—इसलिये पहले राजा को जो अष्टांग निमित्त को जानने में कुशल है श्रेष्ठ हो ऐसे ज्ञानो को अपने राज्य में प्रार्थना पूर्वक नियुक्त करे ।। ३३ ।।
आरोग्यं जीवितं लाभं सुखं मित्राणि सम्पदः ।
धर्मार्थकाममोक्षाय तदा यात्रा नृपस्य हि॥३४॥
(आरोग्य) निरोगता (जीवितं) जीवन, (लाभ) लाभ (सुख) सुख (मित्राणि) मित्र, (सम्पदः) सम्पदा प्राप्त करने के लिये (व) व (धर्मार्थकाममोक्षाय) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिये (तदा) तब (यात्रा) यात्रा (नृपस्य) राजा को (हि) यात्रा करना चाहिये।
भावार्थ-राजा को, धर्म अर्थ, काम, मोक्ष के लिये व निरोगता, जीवन लाभ, सुख, मित्र, सम्पदा के लिये यात्रा करनी चाहिये॥३४॥
शय्याऽऽसनं यानयुग्मं हस्त्यश्वं स्त्रीनरं स्थितम्।
वस्त्रान्तस्वप्नयोधांश्च यथास्थानं स योक्ष्यति ।। ३५॥ (शय्या) शय्या, (अऽसन) आसन, (यान) सवारी, (युग्मं) का जोड़ा, (हस्त्यश्व) हाथी, घोड़े, (स्त्री) स्त्री, (नरं) मानव, (वस्त्रान्तस्वप्नयोधांश्च) वस्त्र, योद्धादिको राजा (यथास्थानं स योक्ष्यति) यथा स्थान को प्राप्त करता है।
भावार्थ-राजा यथा स्थान यात्रा से शय्या, आसन, सवारी, हाथी, घोड़े, नर-नारी का जोड़ा, वस्त्र, योद्धादि प्राप्त होते हैं, और असमय में यात्रा करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता और अलाभ हो जाता है॥३५ ।।