Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
भृत्यामात्यास्त्रियः पूज्या राज्ञा स्थाप्याः सुलक्षणाः । एभिस्तु लक्षणै राजा लक्षणोऽप्यवसीदति ॥ ३६ ॥
(राजा) राजा को (भृत्य) नौकर (अमात्या) मन्त्री (स्त्रियः) स्त्रियाँ (सुलक्षणा :) जो सुलक्षण से सहित हो उनको राज्य में (स्थाप्याः ) स्थापन करना चाहिये (एभिस्तु लक्षणै राजा ) इस प्रकार के लक्षणों से युक्त राजा ही (लक्षणोऽप्यवसीदति ) अपने लक्ष्य की सिद्धि कर सकता है।
भावार्थ राजा की अपने राज्य में अच्छे भृत्य, मन्त्री सुलक्षणों से सहित स्त्रियाँ आदि राज्य चलाने के लिये स्थापन करना चाहिये, ऐसा राजा ही राज्य चला सकता है ॥ ३६ ॥
तस्माद् देशे च काले च सर्वज्ञानवतां वरम् । सुमनाः पूजयेद् राजा नैमित्तं दिव्यचक्षुषम् ॥ ३७ ॥
( तस्माद् ) इसलिये ऐसे (देशे ) देश में (च) और (काले) काल में (वरम् ) श्रेष्ठ (सर्वज्ञानवतां ) सर्व अष्टाङ्ग ज्ञान के धारी ( दिव्यचक्षुषम् ) दिव्य चक्षु से सहित (नमित्तं) निमित्तज्ञ को (सुमनाः) अच्छे भाव से (राजा) राजा को ( पूजयेद्द) पूजना चाहिये ।
भावार्थ -- इसलिये राजा को अच्छे भाव से श्रेष्ठ दिव्य चक्षु से सहित अष्टांग ज्ञानधारी निमित्तज्ञ की पूजा करनी चाहिये ॥ ३७ ॥
न वेदा नापि चाङ्गानि न विद्याश्च पृथक् पृथक् । प्रसाधयन्ति तानर्थान्निमित्तं यत् सुभाषितम् ॥ ३८ ॥
(यत्) जिस प्रकार (तान) उस (सुभाषितम्) अच्छे भाषण करने वाले (निमित्तं) निमितज्ञ से ( अर्थान् प्रसाधयन्ति ) अर्थ की सिद्धि होती ही वैसे ( न वेदा) न वेद से ( नापि चात्रानि) और न कोई अर्को से (न विद्याश्च पृथक् पृथक् ) न कोई अलग-अलग विद्या से सिद्धि होगी ।
भावार्थ — अच्छे भाषण करने वालेनिमित्तज्ञसे जो सिद्धि राजा को होगी, उस प्रकार की सिद्धि न कोई वेद ज्ञान कोई विद्या, न कोई शरीर बल से सिद्धि होगी। वेदादिक से ऐसी सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती है ॥ ३८ ॥