Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
को कभी भी उपर्युक्त पदवीयों का कार्य न सौपे, नहीं तो राज्य व प्रजा दोनों ही नष्ट हो जायगें ।। १८-१९-२० ॥
सदाहितः । योजयेत् ॥ २१ ॥
नित्योद्विनो नृपहिते युक्तः प्राज्ञः एवमेतान् यथोद्दिष्टान् सत्कर्मेषु च (नित्योद्विग्नो) नित्य ही उद्विग्न (नृपहिते युक्त:) राज के हित में युक्त ( प्राज्ञः ) बुद्धिमान (सदाहितः) सदा ही राजा का हित करने वाला ( एवमेतान् ) उपर्युक्त गुण ( यथोद्दिष्टान् ) जो कहे गये है ऐसे पुरोहित को ही (सत्कर्मेषु च योजयेत् ) सत्कार्यों में योजना करना चाहिये ।
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भावार्थ- - राजा के कार्य का नित्य ही सद् विचार करने वाला, राजा के उद्विग्नचित्त को समाहित करने वाला, बुद्धिमान, पुरोहित को ही राजकार्य में राजा को नियुक्त करना चाहिये ।। २१ ।।
न
सिद्धयन्ति
कदाचन ।
इतरेतरयोगेन अशान्तौ शान्तकारो यो शान्तिपुष्टिशरीरिणाम् ॥ २२ ॥
( इतरेतरयोगेन) गुण से रहित व्यक्तियों को अगर राजा पुरोहितादि बनाया जाय तो ( न सिद्धयन्ति कदाचन) कभी-भी कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती है पुरोहितादि तो वही हो ( अशान्तौ शान्तकारी यो ) जो अशान्त को भी शान्त कर दे और (शान्तिपुष्टि शरीरिणाम्) जीवों को शान्ति पुष्टि देने वाला हो ।
भावार्थ — उपर्युक्त गुणों से रहित राजा, पुरोहित, वैद्य, ज्योतिषि कभी नही होना चाहिये, अगर अयोग्य व्यक्ति इन पदभार को सम्भाले तो राजा के यात्रा सम्बन्धी कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता, राजादिक तो गुणवान हो जो अशान्त को शान्त कर दे व प्रजाजनों को शान्ति पुष्टि का कारण बने ॥ २२॥
देवतैरपि । मतम् ॥ २३ ॥
'यद्देवासुरयुद्धे च निमित्तं कृतप्रमाणं च तस्माद्धि द्विविधं दैवतं
( यद्देवाऽसुरयुद्धे च ) देव और असुरों के युद्ध में (दैवतैरपि ) देवताओं ने भी ( निमित्तं) निमित्तों को (प्रमाणकृत) प्रमाण किया था, (तस्माद्धि) इसलिये वो (दैवतं ) निमित्त ( द्विविधं मतम् ) दो प्रकार के माने गये हैं ।