Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भावार्थ - इन्द्र धनुष के रंग का या अग्निके समान या धूम्रके वर्ण का हो तो मनुष्यों को अवश्य ही अग्नि भय उपस्थित होता है ॥ १२ ॥
खण्डं
तदा
एकादशोऽध्यायः
विशीर्ण सच्छिद्रं गन्धर्वनगरं तस्कर संङ्घानां भयं सञ्जायते
( यदा) जब (गन्धर्वनगरं ) गन्धर्व नगर ( खण्डं ) खण्ड-खण्ड हो ( विशीर्णं ) विशीर्ण हो ( सच्छिद्रं) छिद्र सहित हो ( तदा ) तब ( सदा ) सदा ( तस्करसंघानां ) चोरों के गिरोह का ( भयं ) भय ( सञ्जायते) उत्पन्न होता है ।
भावार्थ- -जब गन्धर्व नगर खण्ड रूप दिखे, विसीर्ण रूप दिखे और छिद्रों से युक्त हो तो वहाँ पर चोरों के गिरोह से भय उत्पन्न होगा || १३ ॥
यदा गन्धर्वनगरं सप्राकारं सतोरणम् । दृश्यते तस्करान् हन्ति तदा चानूपवासिनः ॥ १४ ॥
यदा ।
सदा ।। १३ ।।
( यदा) जब ( गन्धर्वनगरं ) गन्धर्व नगर ( सप्राकारं ) प्राकार सहित ( सतोरणम् ) तोरण सहित हो तो (तदा) तब ( तस्करान् ) चोरों का (च) और ( अनुपवासिनः ) अनुप निवासियों (दृश्यते हन्ति) देखते ही मारे जाते हैं।
भावार्थ- - जब गन्धर्व नगर प्राकार सहित हो तोरण सहित हो तो चोर और अनुपवासि देखते ही मारे जाते हैं । १४ ॥
विशेषतापसव्यं परचक्रेण
तु
गन्धर्वनगरंक्षिप्रं स्वपक्षागमनं चैव
गन्धर्वनगरं
चाभि
जायते
जयं
महता
नगरं
( यदा) जब (गन्धर्वनगरं ) गन्धर्व नगर (विशेषतापसव्यं) विशेषकर के अपसव्य रूप दिखाई पड़े (तु) तो (नगर) नगरको (परचक्रेण ) पर चक्रका ( महता ) महान ( चाभिभूयते) घेरा पड़ता है।
भावार्थ- जब गन्धर्व नगर विशेष कर दक्षिण में दिखाई पड़े तो समझो नगर पर चक्र से घेरित होगा, याने उस नगर पर चक्र का आक्रमण हो जायगा ।। १५ ।।
यदा ।
भूयते ।। १५ ।।
चाभिदक्षिणम् । वृद्धिं जलंवहेत् ॥ १६ ॥