Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता ।
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होती है और वायु, अग्नि, अनावृष्टि आदि की वृद्धि होती है एक वर्ष में एक महीने तक ही वर्षा होती है।। ४६।।।
विशाखासु विजानीयात् खारि मेकौ न संशयः । सस्यं निष्पद्यते चापि वाणिज्यं पीड्यते तदा ॥४७॥ अपग्रहं तु विजानीयाद् दशाहं प्रौष्ठपादिकम्।
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं तां समां नाऽन्न संशयः ।। ४८ ॥ (विशाखासु) विशाखा नक्षत्रमें वर्षा हों तो (विजानीयात्) जानो (खारि मेकां न संशय:) सोलह द्रोष वर्षा होती है इसमें कोई सन्देह नहीं है (सस्यनिष्पद्यते चापि) धान्यो की उत्पत्ति तो अच्छी होती है (वाणिज्य) व्यापार (तदा) तब (पीड.ते) पीडित होता है (प्रौष्ठपादिकम्) भाद्रके (दशाह) दस दिनों में (अपग्रह) अशुभ (विजानीयाद्) होगा ऐसा जानो, (क्षेमं) क्षेम (सुभिक्षं) सुभिक्ष, (आरोग्य) निरोगता होगी, (तां) उसमें (समांनाऽत्र संशयः) कोई सन्देह नहीं करना चाहिये।
भावार्थ-विशाखा नक्षत्र में वर्षा हो तो सोलह द्रोण प्रमाण वर्षा होगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है धान्यो की उत्पत्ति तो अच्छी होती है किन्तु व्यापार मन्द हो जाते हैं भाद्र के दस दिनों में कोई न कोई अशुभ अवश्य होगा, क्षेम, सुभिक्ष, निरोगता बढ़ेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है।। ४७-४८ ।।
जानीयादनुराधायां खारिमेकां प्रवर्षणम्। तदा सुभिक्षं सक्षेमं परचक्रं प्रशाम्यति॥४९॥ दूरं प्रवासिका यान्ति धर्मशीलाच मानवाः।
मैत्री च स्थावरा ज्ञेया शाम्यन्ते चेतयस्तदा ॥५०॥ (अनुराधायां) अनुराधा नक्षत्रको जल बरसे तो (खारिमेकां) सोलह द्रोण प्रमाण (प्रवर्षणम्) वर्षा होगी, (जानीयाद्) ऐसा जानो, (तदा) तब (सुभिक्ष) सुभिक्ष (सक्षेम) क्षेम के साथ (परचक्रं प्रशाम्यति) परचक्र भी शान्त हो जायगा, (दूर प्रवासिकायान्ति) दूर के यात्री भी वापस लौट आते हैं (मानवा:) मानव (धर्मशीलाश्च) धर्मशील रहेंगे, (मैत्री च स्थावरा ज्ञेया) स्थावरों में मैत्रीभाव जानो (शाम्यन्ते चेतयस्तदा) सर्व उपद्रव शान्त हो जाते हैं।