Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
वर्षा, फसल में कमी और वन एवं खनिज पदार्थोंकी उत्पत्तिमें कमी होती है । बधुवारको आर्द्रामें सूर्यका प्रवेश हो तो अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, धान्य भाव सस्ता, रस भाव महँगा, खनिज पदार्थोंकी उत्पत्ति अधिक, मोती माणिक्यकी उत्पत्तिमें वृद्धि, घृतकी कमी, पशुओंमें रोग और देशका आर्थिक विकास होता है। गुरुवारके दिन आर्द्रामें सूर्यका प्रवेश हो तो अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, अर्थ वृद्धि, देशमें उपद्रव, महामारियोंका प्रकोप, गुड़-गेहूँका भाव महँगा तथा अन्य प्रकारके अनाजोंका भाव सस्ता; शुक्रवारमें प्रवेश हो तो चातुर्मासमें अच्छी वर्षा, पर माघमें वर्षाका अभाव तथा कार्तिक में भी की कमी भी है। इसके अतिरिक्त फसल में साधारणतः रोग, पशुओंमें व्याधि और अग्निभय एवं शनिवारको प्रवेश हो तो दुष्काल, वर्षाभाव या अल्पवृष्टि, असमय पर अधिक वर्षा, अनावृष्टिके कारण जनतामें अशान्ति, अनेक प्रकारके रोगोंकी वृद्धि, धान्यका अभाव और व्यापारमें भी हानि होती है । वर्षाका परिज्ञान रवि का आर्द्रा में प्रवेश होनेमें किया जा सकेगा। पर इस बातका ध्यान रखना होगा कि प्रवेशके समय चन्द्र नक्षत्र कौन सा है ? यदि चन्द्र नक्षत्र मृदु और जलसंज्ञक हो तो निश्चयतः अच्छी वर्षा होती है और उग्र तथा अग्नि संज्ञक नक्षत्रोंमें जलकी वर्षा नहीं होती । प्रातः काल आर्द्रामें प्रवेश होने पर सुभिक्ष और साधारण वर्षा, मध्याह्नकालमें प्रवेश होने पर चातुर्मासके आरम्भ में वर्षा, मध्यमें कमी और अन्तमें अल्पवृष्टि एवं सन्ध्या समय प्रवेश होने पर अतिवृष्टि या अनावृष्टिका योग रहता है। रात्रिमें जब सूर्य आर्द्रामें प्रवेश करता है, तो उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है, किन्तु फसल साधारण ही रहती है। अन्नका भाव निरन्तर ऊँचा - नीचा होता रहता है। सबसे उत्तम समय मध्य रात्रिका है, इस समयमें रवि आर्द्रामें प्रवेश करता है तो अच्छी वर्षा और धान्य की उत्पत्ति उत्तम होती है। जब सूर्य आद्रा में प्रवेश हो उस समय चन्द्रमा केन्द्र या त्रिकोणमें प्रवेश करे अथवा चन्द्रमाकी दृष्टि हो तो पृथ्वी धान्य से परिपूर्ण हो जाती है। जिस ग्रहके साथ सूर्यका इत्थशाल सम्बन्ध हो, उसके अनुसार भी फलादेश घटित होता है। मंगल, चन्द्रमा और शनिके साथ यदि सूर्य इत्थशाल कर रहा हो तो उस वर्ष घोर दुर्भिक्ष तथा अतिवृष्टि या अनावृष्टिका योग समझना चाहिए। गुरूके साथ यदि सूर्यका इत्थशाल हो तो यथेष्ट वर्षा, सुभिक्ष और जनतामें शान्ति रहती है। व्यापारके लिए भी यह योग उत्तम है। देशका आर्थिक