Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु मंहिता
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पुन:) पुनः संक्षेप से वर्णन करता हूँ, (भद्रबाहुवचः श्रुत्वा ) भद्रबाहु स्वामी के वचन सुनकर ( मतिमानवधारयेत् ) बुद्धिमानो के अवधारण करना चाहिये
भावार्थ - इस प्रकार भद्रबाहु स्वामी ने विस्तार से वर्णन किया अब संक्षेप से पुनः वर्णन करते है है बुद्धिमानो भद्रबाहु के वचन सुनकर मनमें अवधारण करो ॥ ५३ ॥ द्वात्रिंशदाढकानिस्युः नक्रमासेषु निर्दिशेत् ।
सक्षेत्रे द्विगुणितं तत् त्रिगुणं वाहिकेषु च ॥ ५४ ॥
(नक्रमासेषु) श्रावणमासमें यदि वर्षा हो तो बत्तीस आदक प्रमाण वर्षा (निर्दिशेत्) निर्देशन किया है (समक्षेत्रे ) समक्षेत्रमें फसल ( द्विगुणितं ) दिगुणित होगी, (तत्) उसी प्रकार (वाहिकेषु च त्रिगुणं) उसे स्थल में तीन गुणित फसल होगी।
भावार्थ श्रावणमासमें वर्षा हो तो बत्तीस आदक प्रमाण वर्षा होगी और समक्षेत्र में फसल द्विगुणित ऊँचे स्थान में फसल तीन गुणित होती है ॥ ५४ ॥
उल्कावत् साधनं चात्र वर्षणं च विनिर्दिशेत् । शुभाशुभं तदा वाच्यं सम्यग् ज्ञात्वा यथाविधि ॥ ५५ ॥
(उल्कावत साधनं ) उल्का के समान ही (चात्र ) यहाँ ( वर्षणं) वर्षा के फलका (विनिर्दिशेत् ) निर्देशन किया है। ( तदा) तब ( यथाविधि ) यथाविधि (सम्यग्ज्ञात्वा ) सम्यक् प्रकारसे जानकर ( शुभाशुभं ) शुभाशुभ को फल ( वाच्यं) निरूपण करना चाहिये ।
भावार्थ — उल्काओं के समान ही वर्षा का फल कहा, उसको अच्छी तरह से जानकर शुभाशुभका फल निरूपण किया है ॥ ५ ॥
विशेष वर्णन — इस दशम अध्याय में आचार्य श्री ने प्रवर्षण का वर्णन किया है, इस अध्याय में विशेष वर्णन वर्षाका है इसका वर्णन पहले भी कर आये हैं तो भी विशेष वर्णन इस अध्याय में किया है महीनों व नक्षत्रों व वारों में व पहरों में बरसने वाली मन्द या तेज वर्षा हो तो उसका फल भी वैसा ही होता है । इन निमित्तों के द्वारा वर्ष भर की अतिवृष्टि या अनावृष्टि मालूम पड़ती है, नक्षत्रों के अनुसार विशेषवर्षा हो तो उसका फल भी विशेष इस प्रकार होगा, प्रत्येक महीने में आकाश बादलों से आच्छादि रहे तो बीमारी का कारण होती है, उस प्रदेश में अनेक प्रकार के रोग होते है प्रजा रोगों से पीड़ित होती है ।