Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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दशमोऽध्यायः ।
भावार्थ-यदि हस्ता नक्षत्रमें वर्षा हो तो पच्चीस आढ़क प्रमाण वर्षा होगी, इसलिये निम्न स्थानों की बावडियाँ पाँच वर्गों की हो जाती है, युद्ध की तैयारियाँ होती है शिल्पीयर्यों को सुख मिलता है श्रावण भाद्र आश्विन कार्तिक मास के दस-दस दिन अशुभ होता है चोर, राजा, सेनादिक की वृद्धि होती है।। ४१-४२-४३॥
द्वात्रिंशमाढकानि स्युश्चित्रायाञ्च प्रवर्षणम्। चित्रं विन्यात् तदा सस्यं चित्रं सर्ष प्रवर्षति ।। ४४ ।। निम्नेषु वापयेद् बीजं स्थलेषु परिवर्जयेत्।
मध्यमं तं विजानीयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥४५॥ (चित्रायाञ्च) चित्रा नक्षत्रमें (प्रवर्षणम्) वर्षा हो तो (द्वात्रिंशं) बाईस (आढकानि) आढ़क प्रमाण वर्षा होती है (तदा) तब (चित्र) विचित्र (सस्य) धान्योकी उत्पत्ति होती है (विन्द्यात्) ऐसा जानो (वर्ष) वर्षा भी (चित्र) विचित्र ही (प्रवर्षतित) बरसती है (निम्नेषु) निम्न स्थानों में (बीजं) बीज को (वापये) बोना चाहिये (स्थलेषुपरिवर्जयेत्) ऊँचे स्थानों में बीजों का वपन नहीं करना चाहिये, यह वर्ष (मध्यमं तं विजानीयाद्) मध्यम जानो (भद्रबाहुवचो यथा) ऐसा भद्रबाहु का वचन
भावार्थ-यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा हो तो बाईस आढ़क प्रमाण वर्षा होगी, वर्षा भी विचित्र और धान्यो की उत्पत्ति भी विचित्र होगी, इसलिये नीचे के स्थानो में ही बीजों का वपन करे, ऊँचे स्थान पर नहीं, यह वर्ष मध्यम रहता है ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।। ४४-४५॥
द्वात्रिंशदाढकानिस्युः स्वातौ स्याच्चेत् प्रवर्षणम्।
वायुरग्निरनावृष्टिः वर्षमेकं तु वर्षति ।। ४६॥
यदि (स्वातौ) स्वाति नक्षत्र में वर्षा (प्रवर्षणम्) बरसे तो (द्वात्रिंशदढकानिस्युः) बत्तीस आढ़क प्रमाण वर्षा (स्यात्) होती है और (वायुरग्निरनावृष्टिः) वायु, अग्नि, अनावृष्टिका उपद्रव होता है, (वर्षमेकं तु वर्षति) एक वर्ष में एक महीना ही वर्षा होती है।
भावार्थ-यदि स्वाति नक्षत्र में वर्षा हो तो बत्तीस आढ़क प्रमाण वर्षा