Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
शीलाश्च
धर्मशीलाश्च
साधवः ।
बहुजादीना अपग्रहं विजानीयात् कार्तिके द्वादशाहिकम् ॥ ४० ॥
यदि वर्षा (उत्तरायां तु फाल्गुन्यां) उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें बरसे तो ( षष्टिसप्त) सढ़षठ (आढकानी) आढक प्रमाण वर्षा होती है ऐसा (निर्दिशेत्) निर्देशन किया गया है (सुभिक्षं) सुभिक्ष ( क्षेमं ) क्षेम (मारोग्यं) निरोगता बढ़ेगी (च) और ( बहुजादीनाशीलाश्च) मनुष्यों में दानशीलता बढ़ेगी, (धर्मशीलाश्च साधवः) साधुओं में धर्मशीलता बढ़ेगी, (कार्तिके द्वादशाहिकम्) कार्तिक के बारह रात्रि या दिन में ( अपगतं ) उपद्रव (विजानीयात्) जानो ।
भावार्थ — यदि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रमें वर्षा होती है तो सढ़ष्ठ आढ़क प्रमाण वर्षा होगी, फिर सुभिक्ष होगा, निरोगता बढ़ेगी, क्षेमकुशल होगा धर्मात्माओं में दानशीलता व साधुओं में धर्मशीलता बढ़ेगी और कार्तिक महिने के बारह दिन या रात्रि में कोई न कोई अशुभ घटना घटेगी ॥ ३९-४० ॥
पञ्चाशीर्ति विजानीयात् हस्ते प्रवर्षणं यदा ।
तदानिम्नानि वाप्यानि पञ्चवर्णं च
सुखोत्तमम् ।
सङ्ग्रामाश्चानु वर्धन्ते शिल्पिकानां श्रावणाश्वयुजे मासि तथा कार्तिक मेव च ।। ४२ ।। अपग्रहं विजानीयान्मासि मासी चौराश्च बलवन्तः स्युरुत्पद्यन्ते च
जायते ।। ४१ ।।
२०२
दशाहिकम्। पार्थिवाः ॥ ४३ ॥
( यदा) जब (हस्ते ) हस्ता नक्षत्रमें पानी (प्रवर्षणं) वर्षा हो तो (पञ्चाशीतिं) पच्चीस आढ़क प्रमाण वर्षा होती है (विजानीयात्) ऐसा चानो ( तदा) तब (निम्नानि वाप्यानि ) निम्न स्थानों की बावडीयाँ (पञ्चवर्णं च जायते) पाँच वर्ण की हो जाती है (च) और (सङ्ग्रामाश्चानु वर्धन्ते ) युद्धादिक की वृद्धि होती (शिल्पिकानां सुखोत्तमम् ) शिल्पियों को सुख मिलता है (श्रावणाश्च) श्रावण (युजे) के ( मासि ) महीने से लगाका (तथा) तथा (कार्तिकमेव च ) कार्तिक महीने तक ( मासि मासी) प्रत्येक महीने के ( दशाहिकम् ) दस-दस दिनों में ( अपग्रहं ) अशुभ (विजानीयात्) जानो ( चौसश्च बलवन्तः) चोर बलवान होंगे (च) और ( पार्थिवा:) राजाओं की (रुत्पद्यन्ते) उत्पत्ति होती है।