Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
चत्वारिंशच्च द्वे वाऽपि जानीयादाढकानि च। पुष्येण मन्द वृष्टिञ्च निम्ने वीजानि वापयेत् ॥३२ ।। पक्षमश्वयुजे चापि पक्षं प्रोष्ठपदे तथा।
अपग्रहं विजानीयात् बहुलेऽपि प्रवर्षति ॥३३॥ (पुण्येण) पुष्प नक्षत्रमें वर्षा हो तो (चत्वारिच्चद्वे) ब्यालिस (आढकानि) आढ़क प्रमाण वर्षा (जानीयाद्) जानना चाहिये (वाऽपि) और (मन्दवृष्टिश्च) मन्द वृष्टि होती है इसलिये (निम्ने वीजानि वापयेत्) निम्न स्थानों में बीजों का वपन करना चाहिये, (च) और (अपग्रह) अशुभ होगा (विजानीयात्) ऐसा जानो (बहुलेऽपि प्रवर्षति) वर्षा बहुल रूप होती है (पक्षमश्वयुजें चापि पक्षं प्रोष्ठपदे तथा) तथा आश्विनमास में और भाद्रपद में वर्षा होती है।
भावार्थ-यदि पुष्य नक्षत्रमें वर्षा हो तो ब्यालिस आढ़क प्रमाण वर्षा होती है मन्द-मन्द वर्षा होती है कभी होती है तो कभी नहीं होती, इसलिये निम्न स्थानों में ही बीजों का वपन करना चाहिये आश्विन मासमें व भाद्रपदमें वर्षा होती है कुछ अशुभ भी होता है और वर्षा भी बहुल रूप होती है॥३२-३३॥
चतुष्पष्टिमाढकानीह तदा वर्षति वासवः । यदाः: श्लेषाश्च कुरुते प्रथमे च प्रवर्षणम् ।। ३४ ॥ सस्य घातं विजानीयात् व्याधिभिश्चोदकेनतु।
साधवो दुःखिता ज्ञेया प्रोष्ठपदमपग्रहः ।। ३५ ॥ (यदा) जब (श्लेषाश्च) आश्लेषा के (प्रथमे) प्रथम चरण में (प्रवर्षणम्) वर्षा (कुरुते) करते है तो (तदा) तब (चतुषष्टिमाढकानीह) चौसठ आढ़क प्रमाण (वासव:) बर्षा (वर्षति) बरसती है (सस्यधातं विजानीयात्) धान्यो का घात जानो, (व्याधिभिश्चोदकेनतु) पानी से व्याधि उत्पन्न हो अथवा नहीं हो (साधवो) साधु लोग (दुःखिता) दुःखित (ज्ञेया) होंगे ऐसा जानो (च) और (प्रोष्ठपदमपग्रह) भाद्रमास में अनिष्ट हो।
भावार्थ-जब आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में वर्षा हो तो चौसठ आढ़क प्रमाण वर्षा होगी और धान्यो का धात अवश्य होगा, व्याधियां फैलेगी फिर ठीक