Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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दशमोऽध्यायः
आढ़क प्रमाण वर्षा होती है ( विन्द्याद्) जानो, ( न संशयः) उसमें कोई संशय नहीं हैं । ( व्यालाः ) सर्प ( सरीसृपाश्चैव) समर्नादिक का (त्यायोजन ) ना प्रकार के रोगों से ( मरणं) मरण होता है, ( सस्यं ) धान्यो को (कनिष्ठ) कनिष्ठ ( विज्ञेयं) जानो (प्रजा) प्रजा (सर्वाश्च) सब (दुःखिता ) दुःखित होती है ।
भावार्थ — यदि भरणी नक्षत्र में वर्षा प्रारम्भ हो और उसमें ही वर्षा होती है तो उन्नीस आढ़क प्रमाण वर्षा होती है उसमें कोई संशय नहीं हैं, व्याल, सरी सर्पादिक का नाना प्रकार के रोगों से मरण होगा, धान्यो की उत्पत्ति थोड़ी होगी, सब प्रजा दुःखी होगी ।। २१-२२ ॥
आढकान्येक पञ्चाशत् कृत्तिकासु समादिशेत् ।
तदा
ज्ञेयः
त्वपग्रहो द्वैमासिकस्तदा
देवाश्चित्रं
निम्नेषु वापयेद् बीजं भय
सप्तविंशतिरात्रकः ॥ २३ ॥
सस्यमुपद्रवम् । मग्नेर्विनिर्दिशेत् ॥ २४ ॥
(कृत्तिकासु) कृत्तिका नक्षत्र में यदि वर्षा हो (आढकान्येक पञ्चाशत् ) इक्कावन आदक प्रमाण वर्षा होगी, ( तदा) तब ( सप्तविंशतिरात्रक : ) सत्ताइस रात्रि दिवस में (त्वपग्रहो ) अशुभ होगा, (ज्ञेयः) ऐसा जानना चाहिये और (द्विमासिकस्तदादेव) दो महीने तक ही तब वर्षा होगी ( सस्यम् ) धान्य (चित्र) भी चित्र विचित्र रूप होगा (उपद्रवम्) उपद्रव भी होगा, (निम्नेषुवापयेद्बीजं ) निम्न स्थानों में बीजों का वपन करना चाहिये और (अग्ने) अग्निका ( भयम् ) भय होगा (विनिर्दिशेत् ) ऐसा निर्देश किया गया है ।
अपग्रहं निजानीयात्
भावार्थ-यदि वर्षा कृत्तिका नक्षत्र में हो तो समझो इक्कावन आढक प्रमाण वर्षा होगी, सत्ताइस रात्रि - दिनों में कोई अशुभ होगा, वर्षा दो महीने तक ही होगी धान्यो की उत्पत्ति में उपद्रव आयगा, इसलिये नीचे की ओर जो खेत है उसी में बीजों का वपन करना चाहिये, वहाँ पर अग्नि का भय भी अवश्य होगा ।। २३-२४ ॥
आढकान्येकविंशच्च
रोहिण्यामभिवर्षति । सर्वमेका दशाहिकाम् ॥ २५ ॥