Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ- -जब वायु पूर्व संध्या को अपसव्य मार्ग से चले तो नगर का अवरोध होकर आक्रमणकारी प्रतिशत्रु की विजय होती है प्रतिशत्रु को ही यायि आचार्य ने कहा है ॥ ४२ ॥
पूर्वसंध्यां यदा वायुः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः । नागराणां जयं कुर्याद् सुभिक्षं यायि विंद्रवम् ॥ ४३ ॥
( यदा) जब (आयुः) वायु (पूर्व संध्या) पूर्व संध्याको (प्रदक्षिण:) प्रदक्षिणरूप में (सम्प्रवाति) चलता है तो ( नागराणां ) नगरवासी राजाकी (जयं) जय ( कुर्याद) कराता है और (सुभिक्षं) सुभिक्ष होगा (यायि) आने वाले राजाको ( विद्रवम्) हार हो जाती है।
भावार्थ- वायु जब पूर्व संध्या को प्रदक्षिणारूपमें चलती है तो नगरवासी राजाकी विजय होती है प्रतिशत्रु आक्रमणकारी राजा की हार हो जाती है नगर में सुभिक्ष रहता है ॥ ४३ ॥
वा तथा
मध्याह्ने वार्धरात्रे वास्तमनोदये । वायुस्तूर्णयदा वाति तदाऽवृष्टि भयं रुजाम् ॥ ४४ ॥
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( मध्याह्ने ) मध्याह्न में (वार्ध रात्रे वा ) वा अर्ध रात्रि में (तथा) तथा ( वास्तमनोदये) सूर्य अस्त या उदय के समय में (वायुः) वायु ( तूर्णं) शीघ्र ( यदा) जब ( वाति) चले तो (तदा) तब ( अवृष्टि) अवृष्टि (भयं) भय ( रुजाम् ) और रोग होंगे।
यदा अपसव्यो
भावार्थ - यदि वायु सूर्य के अस्त या उदय समय में मध्याह्न में व अर्धरात्रि में शीघ्र गति से चले तो अनावृष्टि रोग और भय उत्पन्न होंगे, ऐसा समझना चाहिये ॥ ४४ ॥
राज्ञ:
प्रयातस्य प्रतिलोमोऽनिलो समार्गस्थस्तदा सेनावधं
भवेत् ।
विदुः ।। ४५ ।।
( यदा) जब (राज्ञः ) राजा के ( प्रयातस्य) प्रयाण के समय ( प्रतिलोमो) प्रतिलोम मार्ग (अनिलो) वायु (भवेत्) होती है और ( अपसव्य) अपसव्य मार्ग से निकलती है ( तदा) तब ( सेनावधं ) सेना का वध (विदुः ) जानो ।