Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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नवमोऽध्यायः
उपद्रव से रहित हो तो (नरेन्द्रस्य) राजा की ( चमूः) सेना ( प्रयातस्य ) प्रयाण कर (सदा) सदा (हारयते ) हार जाती है।
भावार्थ- जब वायु अप्रशस्त हो और उपद्रव रहित दिखता हो उस समय यदि राजा युद्ध के लिये प्रयाण करता हो तो उस राजा की सेना नित्य हार जाती है ॥ ५८ ॥
तिथिनां करणानां च मुहूर्तानां च ज्योतिषाम् ।
मारुतो बलवान् नेता तस्माद् यत्रैव मारुतः ।। ५९ ।।
( तिथीनां ) तिथियों ( करणानां ) करणों (च) और ( मुहूर्तानां ) मुहूतों (च) और (ज्योतिषाम् ) ज्योतिषियों का ( मारुतो) वायु (बलवान्) बलवान (नेता) मुखिया है, (तस्माद ) इस कारण से ( यत्रैव ) वहाँ ही ( मारुतः ) वायु को देखना चाहिये।
भावार्थ- वायु बलवान प्रमुख है क्योंकि वायु ही सबको चलाता है वायु नहीं तो सब निमित नहीं होंगे इसलिये आचार्य श्री ने तिथियों का, कारणों का मुहूर्तों का व ज्योतिषियों का स्वामी वायु को कहा है इसलिये वायु का अवलोकन करना चाहिये ।। ५९ ॥
वायमानेऽनिले उत्तरेवाय
पूर्वे मेघांस्तत्र
समादिशेत् । माने तु जलं तत्र समादिशेत् ।। ६० ।।
(पूर्वे) पूर्व में (अनिले) वायु (वायमाने) चले तो समझो (मेघां:) मेघ (तत्र) उसी दिशा में ( समादिशेत् ) कहना चाहिये । (उत्तरे) उत्तर में (वायमाने ) वायु चले (तु) तो (जलं) वर्षा (तत्र) उत्तरदिशामें ( समादिशेत् ) कहना चाहिये ।
भावार्थ-यदि वायु पूर्वदिशा में चल रही हो तो समझो बादल पूर्व दिशामें है, यदि उत्तर की वायु चल रही हो तो समझो वर्षा का जल भी उत्तर दिशामें है पवन के अनुसार ही मेघ या पानी का अनुमान लगाना चाहिये ॥ ६० ॥
ईशाने वर्षणं ज्ञेयमाये नैर्ऋतोऽपि
च ।
याम्ये च विग्रहं ब्रूयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥ ६१ ॥
( ईशाने ) ईशान में वायु चले तो (वर्षणं) वर्षा है (ज्ञेयम्) ऐसा जानना चाहिये