Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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नवमोऽध्यायः
से सम्पन्न हो ( मुख्या) मुख्य हो, ( मुहूर्तादुत्थितो) मुहूर्त के लिये उठा हुआ (नैर्ऋत) नैर्ऋत्य कोण (वायु) वायु ( सर्वोऽपि ) उन सत्र ( हन्यात्) नष्ट कर देता है। भावार्थ-नैऋत्यकोण से उठा हुआ वायु मेघ चाहे सर्व लक्षणों से सम्पन्न हो, जल से भरे हुए हो, मुख्य हो तो भी एक क्षण में नष्ट कर देता है, पानी को नहीं बरसने देगा, ऐसी वायु मेघों को उड़ाकर ले जाती है ॥ ६४ ॥
सर्वथा बलवान् वायुः स्वचक्रे निरभिग्रहः । करणादिभिः संयुक्तो विशेषेण
शुभाशुभ: ॥ ६५॥ (निरभिग्रह: ) अभिग्रह से रहित (वायुः) वायु (स्वचक्रे) अपने चक्रमें (सर्वथा ) सब तरह से (बलवान्) बलवान होता है (विशेषेण) विशेष रीति से (करणादिभि; ) करणादिक से (संयुक्तो) संयुक्त हो तो (शुभाशुभ:) शुभ या अशुभ हो जाती
है।
भावार्थ — निरभिग्रह से युक्त वायु अपने चक्र में बलवान हो जाता है और करणादिक युक्त होने पर वहीं वायु शुभ या अशुभ रूप हो जाती है ॥ ६५ ॥
विशेष- अब आचार्य यहाँ पर वायुओं का लक्षण व फल बतलाते हैं, वायु के चलने पर अनेक बातों का ज्ञात होता है, वायु से शुभाशुभ सुभिक्ष व दुर्भिक्ष, वर्षा, कृति सेना व सेनापति, राजा तथा देश के शुभाशुभत्व का ज्ञान करना चाहिये !
पुण्य और पाप के उदय से शुभाशुभ का लक्षण जीवों के लिये होता है, जैसा पुण्य होगा वैसी ही वायु चलेगी, अगर पुण्य हीनाधिक है तो वायु भी हीनाधिक चलकर फल को भी हीनाधिक कर देगी, वायुओं में, आषाढ़ी प्रतिपदा व पूर्णिमां मुख्य है इन दोनों तिथियों में जैसी दिशा की वायु चले तो वर्षा, कृषि, व्यापार, रोग, उपद्रव की जानकारी प्राप्त होती है जो जानकार निमित ज्ञानी है वो वायु के चलने पर सब प्रकार के फल को जान लेता है ।
अमुक दिशा की वायु अमुख दिन में, अमुक महीने में हो तो अमुख महीने के अमुख दिन में वर्षा या अवर्षा होगी, जैसे आषाढ़ी प्रतिपदा के दिन सूर्यास्त के समय में पूर्व दिशा में वायु चले तो आश्विन महीने में अच्छी वर्षा होती है ।