Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(आग्नेये) आग्नेय में (च) और (नैर्ऋतेऽपि) नैर्ऋत्यदिशामें भी चले (च) और (याम्ये) दक्षिण में पवन चले तो (विग्रह) युद्ध होगा (ब्रूयाद्) ऐसा कहना चाहिये, यहाँ पर (भद्रबाहु वचो यथा) भद्रबाहु स्वामी का ऐसा ही वचन है।
भावार्थ-जब ईशान कोण में लागु को लो बालश्य ही वर्ण होगी, अम्मियी वायु नैर्ऋत्यी कोण की वायु और दक्षिण कोण की वायु चले तो वहाँ पर अवश्य युद्ध होगा, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥६१॥
सुगन्धेषु प्रशान्तेषु स्निग्धेषु मार्दवेषु च।
वायमानेषु वातेषु सुभिक्षं क्षेममेव च॥६॥ (वायमानेषु वातेषु) चलने वाली वायु में यदि सगन्धी हो (प्रशान्तेषु) प्रशान्त हो (स्निग्धेषु) स्निग्ध हो (मार्दवेषु) कोमल हो तो (सुभिक्षं) सुभिक्ष (च) और (क्षेममेव) क्षेमकुशल ही होगा।
भावार्थ-चलने वाली वायु में यदि सुगन्धी हो, वह वायु प्रशान्त हो स्निग्ध हो, हल्की हो तो समझो सुभिक्ष और क्षेम कुशल होगा॥६२॥
महतोऽपि समुद्भूतान् सतडित् साभिगर्जितान्।
मेधान्निहनते वायु नैर्ऋतो दक्षिणाग्निजः ॥१३॥ (नैर्ऋतो) नैर्ऋत्तकोण की (दक्षिणाग्निज:) दक्षिण दिशाकी ओर आग्नेय दिशा की (वायु) वायु (मेघान्) मेघों को चाहे वो (सतडित्) बिजली सहित हो (साभिगर्जितान्) बादलों की गड़गड़ाहट से (समुदभूतान्) सहित हो और (महतोऽपि) महान भी हो तो (निहनते) नष्ट कर देता है।
भावार्थ---यदि मेघ काले-काले हो गड़गड़ाहट से युक्त हो उसमें बिजली चमकती हो और ऐसा लगेगा की अभी-अभी ही पानी बरसने वाला है ऐसी स्थिति वाले बादल भी, नैर्ऋत्य कोण की वायु दक्षिण कोण की वायु अग्निकोण की वायु चले तो उन मेघों को क्षणभर में नष्ट कर देती है, पानी बरसने देती है।। ६३ ।।
सर्वलक्षण सम्पन्ना मेघा मुख्या जलावहाः।
मुहूर्तादुत्थितो वायुहन्यात् सर्वोऽपि नैर्ऋतः॥६४॥ (मेघा) मेघ (जलावहा:) जल से भरे हुए हो, (सर्वलक्षणसम्पन्ना) सर्व लक्षणों