Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पूर्व वातो यदातूर्ण सप्ताहं वाति स्व स्थाने नाभिवर्षेत् महदुत्पद्यते प्राकारपरिखाणाञ्च शस्त्राणां निवेदयति राष्ट्राणां विनाशं
नवमोऽध्यायः
च
समन्ततः ।
ताशोऽनिलः ॥ ४० ॥
( यदा) जब (पूर्व वातो) पूर्व का वायु (तूर्ण) शीघ्रगति ( कर्कशः ) कर्कश होकर (वाति) चलता है तो, (स्वस्थाने) स्वस्थान पर ( वर्षेत ) वर्षा ( नाभि ) नहीं होती है, और (महदुत्पद्यते ) महान् (भयम् ) भय ( उत्पद्यते ) उत्पन्न होता है ( तादृशोऽनिल) इस प्रकार का वायु ( समन्ततः) चारों ओर से ( प्राकारपरिखाणाञ्च ) प्राकार, परिखा, ( शस्त्राणां ) शस्त्रों का ( राष्ट्राणां) देशका (विनाशं) विनाश को (निवेदयति ) निवेदन करता है।
पूर्वसंध्यां पुरावरोधं
कर्कशः । भयम् ।। ३९ ।।
भावार्थ- जब वायु पूर्व दिशा को शीघ्र गमन करने वाली कर्कश होकर चले तो स्वस्थान पर वर्षा नहीं होती है और प्राकार, खातिका शस्त्रों का व देश काचारों से करती है इस बहु का ऐसा ही फल होता है ॥ ३९-४० ॥
सप्तरात्रं दिनार्थं च यः कश्चिद् वाति महद्भयं विविज्ञेयं वर्ष वाऽथ महद्
यदा
कुरुते
( य:) जो ( कश्चिद्) कोई भी ( मारुतः ) वायु ( सप्तरात्रं दिनार्थं ) सात रात्रि आधादिति तक ( वाति) चले तो (महद्भयं विज्ञेयं) महान भयका सूचक जानना चाहिये, ( वाऽथ ) अथवा (वर्ष) वर्षा से ( महद् ) महान भय ( भवेत् ) होता है।
भावार्थ — जो भी वायु चाहे किसी दिशा की हो अगर साढ़े सात दिन तक लगातार चले तो समझो महान भय उपस्थित होगा अनावृष्टि से जनता में आतंक फैलेगा || ४१॥
मारुतः । भवेत् ॥ ४१ ॥
वायुरपसव्यं यायिनां तु
(यदा) जब (वायु) बायु (पूर्वसंध्या) पूर्वसंध्या को (रपसव्यं) अपसव्य मार्ग से ( प्रवर्तते ) प्रवर्तन करता है (तु) तो ( पुरावरोधं ) नगर के अवरोध को (कुरुते ) करता है और (यायिनां ) आक्रमणकारी प्रतिशत्रुके (जयावहः ) विजयका सूचक है।
प्रवर्तते ।
जयावहः ।। ४२ ।।