Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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बमोऽध्यायः ।
यदा तु वाता श्चत्वारो भृशं वान्त्यपसख्यतः ।
अल्पोदकं शस्त्राघातं भयं व्याधिं च कुर्वते।। ३३ ।। (यदा) जब (चत्वारो) चारो ही (वान्यपसव्यतः) अपसव्य मार्ग से (भृशं) निकलती हुई दिखे (तु) तो (अल्पोदकं) थोड़ी वर्षा (शस्त्राघात) शस्त्रों से घात (भयं) भय की उत्पत्ति (च) और (व्याधि) नाना प्रकार के रोग (कुर्वते) करती
भावार्थ-जब वायु चारों ही वायुओं के अपसव्यमार्ग होकर निकले तो समझो अच्छा नहीं है, अनिष्ट की सूचक है वहाँ पर वर्षा थोड़ी होगी लोगों का शस्त्रों से घात होगा, नाना प्रकार के भय उत्पन्न हो जायगें व्याधियां उत्पन्न होगी॥३३ ।।
प्रदक्षिणं यदा वान्ति त एव सुखशीतलाः।
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं राज्यवृद्धिर्जयस्तथा ॥ ३४॥ (यदा) जब (वान्ति) वायु (प्रदक्षिणं) प्रदक्षिणारूप होकर बहे तो (त एव) वहाँ (सुख शीतला:) सुख और शान्ति होती (नथा) तथा (क्षेमं) क्षेम, (सुभिक्षं) सुभिक्ष (आरोग्यं) आरोग्य (राज्यवृद्धि) राज्य की वृद्धि होकर (जयः) जय होगी।
भावार्थ-जब वायु उस दिन प्रदक्षिणा करती हुई चलती है तो वहाँ सुख और शान्ति और जायगी, क्षेम होगा, सुभिक्ष हो जायगा, सब रोग नष्ट हो जायगें, राज्य की वृद्धि होती है, राजा को युद्ध में विजय होती है।। ३४ ॥
समन्ततो यदा बान्ति परस्पर विघातिनः।
शस्त्रं जनक्षयं रोगं सस्थधातं च कुर्वते॥ ३५॥ (यदा) जब (वान्ति) वायु (समन्ततो) चारो वायुओं का (परस्परविघातिनः) परस्पर घात करती हुई बहे तो वहाँ पर (शस्त्रं) शस्त्र उपद्रव (जनक्षयं) लोगों का घात (रोग) रोगों की उत्पत्ति, (च) और (सस्यधात) धान्यो का घात (कुर्वते) करती है।
भावार्थ- यदि वायु चारों वायुओं का परस्पर विघात करती हुई चले समझो, शस्त्रों का उपद्रव होकर जनक्षय होगा, नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे धान्यो का घात होगा ऐसा जानो।॥ ३५॥