Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
से सहित (अकालज:) अकाल में चले और वो भी (पांशु भस्म, समाकीर्णः) धूलि
और भस्म से सहित चले तो (सस्यघातो) धान्यो का घात करने वाली और (भयावहः) भय को उत्पन्न कराने वाली होती है।
भावार्थ-यदि वायु मेघरहित उत्पात से सहित धूलि व भस्म से सहित चले तो धान्यो का घात होगा, प्रजा को भय उत्पन्न होगा॥४८॥
सविद्युत्सरजो वायुरुर्ध्वगो वायुभिः सह ।
प्रवाति पक्षिशब्देन क्रूरेण स भयावहः ।। ४९ ।। (सविद्यत्सरजोवायु) यदि वायु बिजली से और धूलि से युक्त होता हुआ (रुर्ध्वगो) उर्द्ध चले और वो भी (वायुभिःसह) अन्य वायु के साथ चले (पक्षिशब्देन) पक्षीके समान शब्द करे तो (स) वह वायु (क्रूरेण) क्रूर है (भयावह:) भय की उत्पादक है।
__ भावार्थ-यदि वायु पक्षी के समान शब्द करती हुई बिजली की चमक से युक्त धूलि से सहित ऊपर को गमन करती हुई चले तो समझो वो वायु क्रूर परिणामक और भय की उत्पादक है॥४९।।।
प्रवान्ति सर्वतो वाता यदा तूर्णं मुहुर्मुहुः।
यतो यतोऽभिगच्छन्ति तत्र देशं निहन्ति ते॥५०॥ (यदा) जब (वाता) वायु (मुहुर्मुहुः) बार-बार (तूर्णं) शीघ्र (सर्वतो) सब ओर से (प्रवान्ति) बहे (यतो यतोऽभिगच्छन्ति) और जिस दिशा की ओर बहे (ते) तो (तत्र) उस (देशनिहन्ति) देश को नष्ट करेगा।
भावार्थ-जब वायु बार-बार शीघ्रगति से जिस दिशा में बहे तो समझो उसी देश का नाश होगा।। ५० ।।
अनुलोमो यदाज्नीको सुगन्धो वाति मारुतः।
अयत्ततस्ततो राजा जयमाप्नोति सर्वदा॥५१॥ (यदाऽनिके) जब सेना में (अनुलोमो) अनुलोम रूप (सुगन्धो) सुगन्धित (मारुत:) वायु (वाति) चले (ततो) तो उस (राजा) राजा को (अयत्नतः) प्रयत्न किये बिना ही (सर्वदा) सब प्रकार से (जयमाप्नोति) जय को प्राप्त कराती है।