Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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मक्खियाँ (प्रबला:) प्रबल (जायन्ते) उत्पन्न हो जाते हैं। (मध्यम) कहीं पर मध्यम (क्वचिदुत्कृष्टं) कहीं पर उत्कृष्ट (वर्ष) वर्षा (च) और (संस्य) धन्यि (जायते) उत्पन्न होते हैं (धान्यार्थ) धान्य का लाभ (किञ्चिद्) भी कहीं पर (नून) न्यून (च) और (मध्यम) मध्यम होगा (तत्र) वहाँ पर (निर्दिशेत्) निर्देशन किया है।
भावार्थ-यदि वायु वायव्य कोणमें आषाढ़ी पूर्णिमा को चले तो समझो उस वर्ष डांस, मच्छर, मक्खियाँ आदि का उपद्रव बहुत हो जाता है वर्षा और धान्य कहीं पर उत्कृष्ट तो कहीं पर मध्यम होते हैं धान्यो का लाभ कहीं पर नून तो कहीं पर मध्यम होता है ऐसा निर्देशन किया गया है।। २३-२४॥
आषाढ़ी पूर्णिमायां तु वायुः पूर्वोत्तरो यदा। वापयेत् सर्व बीजानि तदा चौरांश्च घातयेत् ॥२५॥ स्थलेष्वपि च यद्वीजमुप्यते तत् समृद्धयति। क्षेमं चैव सुभिक्षं च भद्रबाहुवचो यथा॥२६॥ बहूदका सस्यवती यज्ञोत्सव समाकुला।
प्रशान्तडिम्भडमरा शुभा भवति मेदिनी।। २७ ।।
(यदा) जब (वायु:) वायु (आषाढ़ीपूर्णिमां) आषाढ़ी पूर्णिमां को (पूर्वोत्तरा) ईशान कोणकी चले (तु) तो (तदा) तब (वापयेत् सर्वबीजानि) सब बीजों का वपन करना चाहिये, (च) और (चौराश्च) चौरों का (धातयेत्) घात करती है (स्थलेष्वपि) पृथ्वीपर भी (यबीजमुप्यते) जो बीज उत्पन्न होता है (तत्) उनकी (समृद्ध्यति) वृद्धि होती है (च) और (क्षेम) क्षेम, (चैव सुभिक्षं च) और सुभिक्ष हो जाता है (यथा) ऐसा (भद्रबाहुवचो) भद्रबाहु स्वामी वचन है (बहूदका) बहुत वर्षा होती है (सस्यवती) पृथ्वी धान्य युक्त होती है (यज्ञोत्सवसमाकुला) धरती के लोग यज्ञ को उत्सव से आकुलित हो जाती है (डिम्भडमरा) सब आडम्बर (प्रशान्त) शान्त हो जाते हैं (मेदिनी) पृथ्वी (शुभा) मंगलमय (भवति) हो जाती है।
भावार्थ- यदि वायु ईशान कोण की आषाढ़ी पूर्णिमां को चले तो, चोरों का घात हो जाता है चौर उपद्रव शान्ति होता है, उस समय जमीन में सब बीजों का वपन करना चाहिये, कैसी ही जमीन में बीज डाल दिया जाय तो भी उगकर