Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
वृष्टि कारक सन्ध्या के लिये कहा है नीलकमल वैडुर्य और पद्म केशर के समान कान्तियुक्त, वायुरहित सूर्य की किरणों को प्रकाशित करे तो समझो घोर वर्षा होगी।
ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी को आश्लेषा नक्षत्र हो और सांयकालीन सन्ध्या रक्त वर्ण की भास्वर रूप हो तो आगामी वर्ष अच्छी वर्षा होने की सूचना मिलती है याने आगे के वर्ष में वर्षा बहुत अच्छी होती है।
सूर्योदयकाल में दिशाएँ पीली हो हरी हो चित्र विचित्र हो तो समझो सात दिनों में प्रजा में भयंकर रोग होता है।
इत्यादि आचार्य श्री ने सन्ध्या का अलग-अलग फल कहा है निमित्तज्ञानी को यह सब सावधानी से देखकर ही फलादेश को दूसरे से कहे। विशेष निमित्तज्ञानी ही राजा के द्वारा सम्मान पूजा को प्राप्त हो सकता है, राजा को व प्रजा को व साधु सन्तों को बचा कर रख सकता है, नहीं तो स्वयं के साथ में राजा का ब प्रजा का भी नाश कर देता है यहाँ पर थोड़ा डॉक्टर नेमीचन्द आरा का भी अभिप्राय देना अच्छा समझता हूँ ।
विवेचन-प्रतिदिन सूर्यके अर्धास्त हो जानेके समयसे जब तक आकाशमें नक्षत्र भली भाँति दिखाई न दें तब तक सन्ध्या काल रहता है, इसी प्रकार अर्धोदित सूर्यसे पहले तारा दर्शन तक सन्ध्याकाल माना जाता है । सन्ध्या समय बार-बार ऊँचा भयंकर शब्द करता हुआ मृग ग्रामके नष्ट होने की सूचना करता है । सेनाके दक्षिण भागमें स्थित मृग सूर्यके सम्मुख महान् शब्द करें तो सेना का नाश समझना चाहिए । यदि पूर्व में प्रातः सन्ध्याके समय सूर्यकी ओर मुख करके मृग और पक्षियों के शब्द से युक्त सन्ध्या दिखलाई पड़े तो देशके नाशकी सूचना मिलती है। दक्षिण दिशामें स्थित मृग सूर्यकी ओर मुख करके शब्द करें तो शत्रुओं द्वारा नगर ग्रहण किया जाता है। गृह, वृक्ष, तोरण मथन और धूलिके साथ मिट्टीके ढेलोंको भी उड़ानेवाला पवन प्रबल वेग और भयंकर रूखे शब्दसे पक्षियोंको आक्रान्त करें तो
शुभकारी सन्ध्या होती है। सन्ध्याकालमें मन्द पवनके प्रवाहसे हिलते हुए पलाश अथवा मधुर शब्द करते हुए विहङ्ग और मृग निनाद करते हों तो सन्ध्या पूज्य होती है। सन्ध्याकालमें दण्ड, तडित, मत्स्य, मण्डल, परिवेष, इन्द्रधनुष, ऐरावत