Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टमोऽध्यायः |
पढ़ें तो श्रावण और भाद्रपदमें अल्पवृष्टि होती है। आषाढ़ शुक्ला तृतीया बुधवारको हो और इस दिन आकाशमें मेघ दिखलाई पड़ें तो अधिक वर्षा होती है। श्रावण शुक्ल सप्तमीके दिन आकाश मेघाच्छन्न हो तो देवोत्थान एकादशीपर्यन्त जल बरसता है। श्रावण माणा दिनु को जन वर्षे लो का दिनते ४५ दिन तक खूब वर्षा होती है। उक्त तिथिको आकाशमें केवल मेघ दिखलाई पड़ें तो भी फसल अच्छी होती है। श्रावणबदी पञ्चमीको तर्षा हो और आकाशमें मेघ छाये रहें तो चातुर्मास पर्यन्त वर्षा होती रहती है। श्रावण मासकी अमावस्या सोमवारको हो और इस दिन आकाशमें घने मेघ दिखलाई पड़ें तो दुष्काल समझना चाहिए। इसका फल कहीं वर्षा, कहीं सूखा तथा कहीं पर महामारी और कहीं पर उपद्रव होद समझना चाहिए। भाद्रपद सुदी पञ्चमी स्वाति नक्षत्रमें हो और इस दिन मेघ आकाशमें सघन हों तथा वर्षा हो रही हो तो सर्वत्र सुख-शान्ति व्याप्त होती है और जगत्के सभी दुःख दूर हो जाते हैं तथा सर्वत्र मंगल होता है। इस महीनेमें भरणी नक्षत्रमें वर्षा हो और मेघ आकाशकमें व्याप्त हों तो सर्वत्र सुभिक्ष होता है। गेहूँ, चना, जौ, धान, गन्ना, कपास और तिलहन की फसल खूब उत्पन्न होती है। भाद्रपद मासकी पूर्णिमाको जल बरसे तो जगतमें सुभिक्ष होता है। भाद्रपद मासमें अश्विनी और रोहिणी नक्षत्र में आकाशमें बादल व्याप्त हों, पर वर्षा न हो तो पशुओंमें भयंकर रोग फैलता है। आर्द्रा और पुष्यमें रक्तवर्णके मेघ संघर्षरत दिखलाई पड़ें तो विद्रोह और अशान्तिकी सूचना समझनी चाहिए। यदि इन नक्षत्रोंमें वर्षा भी हो जाय तो शुभ फल होता है। श्रवण नक्षत्रकी वर्षा उत्तम मानी गयी है। भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदाको श्रवण नक्षत्र हो और आकाशमें मेघ हों तो सुभिक्ष होता है।
इति श्री पंचम श्रुतकेवली दिगम्बराचार्य श्रीभद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहुसंहिता का विशेष वर्णन मेघों का लक्षण व उनका फल वर्णन करने वाला अष्टम अध्याय का हिन्दीभाषानुवाद की क्षेमोदय नाम की टीका समाप्त ।
(इति अष्टमोध्यायः समाप्त:)