Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(यदा) जब (आषाढ़ीपूर्णिमायांतु) आषाढ़ीपूर्णिमां को (पूर्ववातो) पूर्वका वायु (भवेत्) होता है और (सर्व) पूरे (दिवस) दिन (प्रवाति) चलती है तो, (तदा) तब (सुवृष्टि) अच्छी वर्षा होगी, और (सुषमा) वर्ष भी अच्छा रहेगा।
भावार्थ-जब आषाढ़ी पूर्णिमां को पूर्व में सारे दिन वायु चले तो समझो उस वर्ष अच्छी वर्षा होगी और वह वर्ष भी अच्छा जायगा।७।।
वाप्यानि सर्ववीजानि जायन्ते निरुपद्रवम्।
शूद्राणामुपघाताय सोऽत्र लोके परत्र च॥८॥ (सर्ववीजानि) सब प्रकार बीजों को (वाप्यानि) बोने पर (निरुपद्रवम्) वो बीज निरुपद्रवरूपमें (जायन्ते) उत्पन्न होते हैं (शूद्राणाम्) शूद्रों के लिये (सो) वह (अत्रलोके) इस लोक में (च) और (परत्र) परलोक में (उपधाताय) उपघातका कारण है।
भावार्थ-इस प्रकार के वायु में यदि बीजों को बोने पर वो सब बीज उपद्रव रहित होकर उपजते हैं कोई उपद्रव उनके फलने में नहीं आता, किन्तु शूद्रों के लिये इस लोक और परलोक दोनों में ही दुःख का कारण है।॥८॥
दिवसाधु यदा वाति पूर्वमासौ तु सोदकौ।
चतुर्भागेण मासस्तु शेषं ज्ञेयं यथाक्रमम् ।। ९ ।। (यदा) यदि (वाति) वायु (दिवसाधू) आषाढ़ीपूर्णिमा के आधे दिन चले (तु) तो (पूर्वमासौ) दो महिने (सोदकौ) वर्षा होती है (चतुर्भागणमासतु) पाव भाग चले तो एक महीना वर्षा अच्छी होती है (शेष) बाकी (यथाक्रमम) इसी प्रकार क्रमसे (ज्ञेयं) जान लेना चाहिये।
भावार्थ-आषाढ़ीपूर्णिमा की वायु उस दिन पूरे दिन न चल कर आधे दिन चले तो श्रावण और भाद्रमास में वर्षा अच्छी होगी, अगर दिन के एक भाग में याने चतुर्थांच भागमें वायु चले तो समझो श्रावण महीने में वर्षा अच्छी होगी, इसी क्रम से वायु से वर्षा का क्रम जान लेना चाहिये ॥९॥
पूर्वार्धदिवसे ज्ञेयौ पूर्वमासौ तु सोदको। पश्चिमे पश्चिमौ मासौ ज्ञेयौ बावपि सोदकौ ॥१०॥