Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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यथास्थितं शुभं मेघमनुपश्यन्ति पक्षिणः ।
जलाशया जलधरास्तदा विन्द्याञ्जलं शुभम् ।।७।। (यदि) मेघ (यथास्थित) यथा स्थित होकर (पक्षिणः) पक्षियों के सदृश्य, (शुभं) शुभ (जलाशया) जलाशय के आकार (जलधरा:) जलधर हो (तदा) तब (शुभं) शुभ (जलं) जल को (विन्द्यात्) जानो।
भावार्थयदि मेघ सरोवर और पक्षीयों के आकार के दिखाई दे तो समझो अच्छी जल की वर्षा होगी, खूब मेघ बरसेंगे धरा जल से तृप्त हो जायेगी ।। ७।
स्निग्ध वर्णाश्च ते (ये) मेघा स्निग्धनादाश्च ते (ये) सदा।
मन्दगा: सुमुहूर्ताश्च ये (ते) सर्वत्र जलावहाः॥८॥ (ते) वे (मेघा) मेघ (स्निग्धवर्णाश्च) स्निग्ध वर्ण के (ते) वे (सदा) सदा (स्निग्धनादाश्च) स्निग्ध रूप दिखाई देने वाले, (मन्दगाः) मन्द गति वाले (सुमुहूर्ताश्च) सुमुहूर्तरूप हो तो (ते) वे (सर्वत्र) सर्वत्र (जलावहा:) जल को बरसाने वाले होते
भावार्थ-जो मेघ स्निग्धवर्ण के अतिस्निग्ध, मन्दगति से गमन करने वाले, सुमुहूर्त वाले यदि आकाशमें दिखाई दे तो समझो सब जगह बहुत ही वर्षा होती है।। ८॥
सुगन्धगन्धा ये मेघाः सुस्वराः स्वादुसंस्थिताः।
मधुरोदकाश्च ये मेघा जलाय जलदास्तथा ॥९॥ (ये) जो (मेघाः) मेघ (सुगन्धगन्धा) अत्यन्त सुगन्धिकी गन्धसे युक्त (सुस्वराः) सुस्वरा करने वाले, (स्वादु) अच्छे स्वाद वाले, (संस्थिताः) संस्थित (च) और (मधुरोदका:) मीठे जल वाले यदि होते है (जलाय) जलवाले (जलदास्तथा) जल बरसाने वाले होते हैं।
भावार्थ-जो मेघ बहुत ही सुगन्धि से युक्त अच्छे शब्द वाले स्वादु संस्थित और मिले जलवाले हो तो समझो जल से परिपूर्ण मेध है और ऐसे मेघ बहुत ही जल बरसाने वाले होते हैं मानो अच्छी वर्षा होगी॥९।।