Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रकुचला
(मेघाः ) मेघ ( सविद्युतश्चैव) बिजली सहित हो ( सुगन्धाः ) सुगन्धयुक्त हो, (सुस्वराश्च) सुस्वर वाले है (च) और (सुवेषाश्च) अच्छी आकृति वाले ( सुत्राताश्च) अच्छी वायु वाले (सुधियाश्च) और अच्छे हो तो (सुभिक्षदा) सुभिक्ष को लाने वाले होते हैं।
भावार्थ - यदि मेघ बिजली की चमक सहित हो, सुगन्ध युक्त हो अच्छी गर्जना से युक्त हो अच्छी आकृति वाले हो अच्छी वायु से युक्त हो तो समझो देश में सुभिक्ष करेंगे ॥ २५ ॥
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तानि
अभ्राणां यानि रूपाणि सन्ध्यायामपि यानि च । मेघेषु सर्वाणि समासव्यासतो विदुः ॥ २६ ॥ (यानि) जो (आभ्राणां ) बादलों का ( रूपाणि) स्वरूप है वही ( सन्ध्यायामपि ) सन्ध्याओंका भी वर्णन है ( तानि) उसी प्रकार (सर्वाणि) सब ( मेघेषु) मेघों का वर्णन भी (समासव्यासतो ) विस्तार से ( विदुः ) जानना चाहिये ।
भावार्थ — जो बादलों के लक्षण व फल कहे गये हैं वैसे ही सन्ध्याओं का लक्षण व फल जानो, उसी प्रकार लक्षण व फल मेघों का भी जानना चाहिये ॥ २६ ॥ साधनं ज्ञेयं मेघेष्वपि
उल्कावत् अत: परं प्रवक्ष्यामि वातानामपि
तदादिशेत् । लक्षणम् ॥। २७ ॥
(उल्कावत् ) उल्काओं के समान ही ( मेघेष्वपि ) मेघों का भी ( साधनं ) लक्षण (ज्ञेयं) जानना चाहिये, ( तदादिशेत् ) ऐसी आज्ञा है (अतः ) अब मैं (वातानामपि ) वायुके भी (लक्षणम्) लक्षण को ( परं) अच्छी तरह से ( प्रवक्ष्यामि) कहूँगा ।
भावार्थ—उल्काओं के समान ही मेघों का लक्षण व फल समझो अब मैं वायुओं के लक्षण व फल कहूँगा ।। २७ ।
विशेष वर्णन- अब आचार्य इस अष्टम अध्याय में मेघों का वर्णन कर रहे हैं इस अध्याय में मेघों का वर्ण आकृति, काल आदि के अनुसार शुभाशुभ का वर्णन करेंगे। मेघों का फल जहाँ पर दिखता हैं उसी स्थान पर उसका फल होता है, मेघों से सुभिक्ष या दुर्भिक्ष, शुभ या अशुभ, हानि या लाभ, अतिवृष्टि या अनावृष्टि आदि मालूम पड़ते हैं, मेघों की आकृतियाँ चारों वर्णों के लिये शुभाशुभ