Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टमोऽध्यायः
कहते हैं, विशेषकर इस अध्याय में वर्षा का ही विशेष वर्णन किया गया तो भी थोड़ा अन्य बातों का भी वर्णन किया गया है, कौन से महीने में कौन दिशा से मेघ दिखे और कौन सी ऋतु चल रही हैं उसके अनुसार फलादेश होता है ।
ऋतु के अनुसार विचार करने पर वर्षा ऋतु शरद् ऋतु, ग्रीष्म ऋतु इन तीनों ही ऋतुओं के फल अलग-अलग होता है, वर्षा ऋतु के मेघों से वर्षा का विचार किया जाता है।
शरद ऋतु के मेघों से शुभाशुभ का विचार किया जाता है।
ग्रीष्म ऋतु के मेघों से वर्षा की भी सूचना मिलती है और विशेषकर विजय, यात्रा लाभ अलाभ, इष्ट अनिष्ट, जीवन, मरण आदि का विचार किया जाता
है ।
जैसे कार्तिक की पूर्णिमां को मेघ वर्षा करे तो उस प्रदेश की आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है, धान्योत्पत्ति भी बहुत अच्छी होती है प्रजामें शान्ति हो जाती
है ।
कोई व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमां को नीले रंग के बादलों को देखता है तो, उसको उदर पीड़ा तीन महीनों में अवश्य होगी।
शुक्ल वर्ण के मेघ दर्शन से व्यक्ति को लाभ होता हैं, जीवों को पुण्य पापानुसार दिशाओं में बादल दिखलाई पड़ते है, और उसी प्रकार शुभाशुभ फल होता है, सुभिक्ष भी ऐसी जगह ही होता है मेघ वर्षा भी ऐसी जगह ही करते हैं जहाँ के लोग पुण्यात्मा व धर्मात्मा, साधु सेवा करने वाले हो ।
जहाँ के लोग पापी, दुरात्मा, हिंसक, परपीडाकारक व्यसनी, धर्म से रहित हो तो ऐसे स्थान पर दुर्भिक्ष, आरि-मारी चोर, राजा का उपद्रव अनावृष्टि आदि होते हैं और दुःखित होते है, धर्म के प्रभाव से ही वर्षादि अच्छे होते हैं। विशेष जानकारी के लिये डॉ. नेमीचन्द का अभिप्राय देखे ।
विवेचन — मेघोंकी आकृति, उनका काल, वर्ण, दिशा प्रभृतिके द्वारा शुभाशुभ फलका निरूपण मेघ अध्यायमें किया गया है। यहाँ एक विशेष बात यह है कि मेघ जिस स्थान में दिखलाई पड़ते हैं उसी स्थानपर यह फल विशेषरूपसे घटित होता है । इस अध्यायका महत्त्व भी वर्षा, सुकाल, फसलकी उत्पत्ति इत्यादिके सम्बन्धमें