Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टमोऽध्यायः
भावार्थ-जब मेघ पीले पुष्प के समान आभा वाले हो, शांत हो, स्निग्ध हो तो समझो अवश्य ही वर्षा होगी ।। ३॥
रक्तवर्णो यदामेघः शांतायांदिशि दृश्यते।
स्निग्धो मदगतिश्चापि तदा विन्द्याज्जलं शुभम् ॥४॥ (यदा) जब (मेघः) मेघ (रक्तवर्णो) लाल रंगके होकर (शांतायां) शान्त (स्निग्धो) स्निग्ध (चापि) और भी (मन्दगति) मन्द गति से चलते (दिशि) दिशाओं में (दृश्यते) दिखाई दे तो (तदा) तब (शुभम्) शुभ (जलं) जल की वर्षा (विन्द्याद्) जानो।
भावार्थ-जब मेघ लाल रंगके शान्त, स्निग्ध और मन्द गति से चलने वाले दिशाओं में दिखाई दे तो समझो शुभ जल की वर्षा होगी॥४॥
शुक्ल वर्णो यदा मेघः शान्तायां दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मन्दगतिश्चापि निवृत्तः स जलावहः ॥ ५॥ (यदा) जब (मेघ:) मेघ (दिशि) दिशाओं में (शुक्लवर्णो) सफेद रंग के (शान्तायां) शान्त (चापि) और (स्निग्धो) स्निग्ध (मन्दगतिः) मन्द गति चलते हुऐ (दृश्यते) दिखाई दे (स) वह (जलावहा:) जल का आगमन कराके (निवृत्तः) निवृत्त हो जाते हैं।
भावार्थ-जब मेघ सफेद होकर दिशाओं में शान्त और स्निग्ध दिखाई दे और मन्दगति से चले तो समझो अवश्य ही जल की वर्षा करायेगें और वर्षा होने के बाद वो मेघ निवृत्त हो जाते हैं।। ५ ।।
स्निग्धाः सर्वेषु वर्णेषु स्वां दिशं संसृता यदा।
स्ववर्ण विजयं कुर्युर्दिक्षु शान्तासु ये स्थिताः ।।६।। (यदा) जब मेघ (सर्वेषु वर्णेषु) सब वर्णो के होकर (स्वां) अपनी (दिशं) दिशाओं में (संसृता) दिखे (शान्ता) शान्त हो (स्थिता:) स्थित हो तो (स्व) अपने-अपने (वर्ण) वर्ण की (विजयं) विजयको (कुर्यु:) कराती है।
भावार्थ-जब मेघ सब वर्गों में अपनी दिशाओं में शान्त होकर स्थित हो तो समझो अपने-अपने वर्गों की विजय कराता है॥६॥