Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टमोऽध्याय
मेघों का लक्षण
अत: परं प्रवक्ष्यामि मेघानामपि लक्षणम् । प्रशस्तमप्रशस्तं यथावदनुपूर्वशः ॥ १ ॥
च
( अतः ) अतः (परं) में (मेघानाम् ) मेघोंके (लक्षणम्) लक्षण (अपि) भी, ( प्रवक्ष्यामि) कहूँगा, वो मेघों के लक्षण (प्रशस्तं ) प्रशस्त (च) और (अप्रशस्तं ) अप्रशस्त है । (यथा ) जैसे ( वदनुपूर्वशः) पूर्व में संध्यादिकके लक्षण कहे वैसे में कहूँगा ।
भावार्थ- -अब में मेघों के लक्षण कहूँगा, वो मेघ दो प्रकार के होते हैं प्रशस्त और अप्रशस्त जैसे पूर्व में कहा था वैसा ही कहूँगा ॥ १ ॥
यदाञ्जननिभो मेघः शान्तायां दिशि
दृश्यते । स्निग्धो मन्द गतिश्चापि तदा विन्द्याद् जलं शुभम् ॥ २ ॥
( यदा) जब (मेघ: ) मेघ (अंजननिभो ) अंजन गिरि की प्रभा के समान हो, ( शान्तायां ) शान्त हो, (दिशि ) दिशाओंमें ( दृश्यते) दिखते हो (स्निग्धो ) स्निग्ध हो, (च) और (मन्दगतिः) धीरे-धीरे चलने वाले हो तो ( तदा) तब ( शुभम् ) शुभ ( जलं ) जल की वर्षा (विन्धाद् ) जानो ।
भावार्थ-जब दिशाओं में मेघ अंजन गिरि के समान काले, स्निग्ध मन्दगति से चलने वाले और शान्त दिखे तो समझो मेघों का आगम न होने वाला है शुभ है ॥ २ ॥
पीतपुष्पनिभो यस्तु यदा मेघः समुत्थितः । शान्तायां यदि दृश्येत स्निग्धो वर्षं तदुच्यते ॥ ३ ॥
( यदा) जब (मेघः ) मेध ( पीतपुष्पनिभो ) पीले पुष्प के समान प्रभा वाले ( यस्तु ) जब ( शान्तायां ) शान्त और (स्निग्धो ) स्निग्ध (यदि) यदि (दृश्यते) दिखाई दे तो (वर्ष) वर्षा होगी (तदुच्यते) ऐसा कहा गया है।