Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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१४९
अष्टमोऽध्यायः
मेघा
यदाऽभिवर्षन्तिप्रयाणे मधुरेणैल
मधुराः
तदा
( यदा) जब (मेघा ) मेघ (मधुराः) मधुर और (मधुरेणैव ) मनोहर होकर ( पृथिवीपतेः) राजाके (प्रयाणे ) युद्ध प्रयाण के समय (अभिवर्षन्ति) बरसते हैं ( तदा ) तब (सन्धिर्भविष्यति ) सन्धि हो जाती है।
भावार्थ — जब मेघ राजा के युद्ध प्रयाण समय में मनोहर और मधुर होकर बरसते हैं तो समझो अवश्य ही युद्ध न होकर दूसरे राजा के साथ सन्धि हो जायेगी ॥ १० ॥ वर्षत: श्रेष्ठं अग्रतोविजयङ्करम् । मेघाः कुर्वन्ति ये दूरे सगर्ज्जित सविद्युतः ॥ ११ ॥
पृष्ठतो
( मेघा : ) मेघ यदि राजाके शुद्ध प्रयाण समय में ( दूरेसगर्जित) दूर गर्जना करते हो, (सविद्युतः ) बिजली की चमक से सहित होकर (पृष्ठतो) पीछे से (वर्षतः) वर्षा करते है तो श्रेष्ठ है, (अग्रतो) आगे से वर्षे तो ( विजयङ्करम्) राजा की विजय कराने के सूचक है।
भावार्थ — यदि मेघ दूरवर्ति होकर गर्जते हैं उसमें बिजली चमकती हो और पीछे से वर्षा करते हैं तो श्रेष्ठ है और यदि उसी प्रकार मेघ आगे से बरसते हैं तो राजा के विजय कराने वाले हैं ॥ ११ ॥
पृथिवीपतेः । सन्धिविष्यति ॥ १०॥
पार्थिवः । दुर्जयम् ॥ १२ ॥
मेघशब्देन महता यदा निर्याति गर्जमानेन तदा जयति
पृष्ठतो
( यदा) जब (पार्थिवः) राजा के ( निर्याति) प्रयाण समय में (मेघ) मेघ ( शब्देन महता ) महान शब्द करते हुऐ ( पृष्ठतो) पीछे से (गर्जमानेन) गर्जना करते है ( तदा) तब (दुर्जयम्) प्रतिशत्रु राजा की ( जयति) जय होती है।
भावार्थ — यदि मेघ राजाके प्रयाणसमयमें पीछे से बड़ी जोर से गर्जना करते हों तो समझो दूसरे राजाकी विजय हो जायगी ॥ १२ ॥
महता यदा तिर्यग्
मेघशब्देन
प्रधावति ।
न
तत्र जायते सिद्धि रुभयोः परि सैन्ययोः ॥ १३ ॥