Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
कोश की दूरी पर दिखलाई पड़े तो समझो वायु या वर्षा व मेघ उतने ही दूर समझो और सन्ध्या अगर पाँच योजन माने बीस कोश की दूरी पर दिखाई दे तो समझो वर्षा और वायु उतने ही दूर समझो इन निमित्तों का फल तीन रात्रि या सात रात्र में होगा, जितने दूरी पर ये बादल, बिजली, सन्ध्या, दिखलाई पड़े उतनी दूरी पर ही वायु या वर्षा होगी ।। २४- २५ ॥
उल्कावत् साधनं अतः परं
सर्व सन्ध्यायामभिनिर्दिशेत् । प्रवक्ष्यामि मेघानां तन्निबोधत ।। २६ ॥
(सर्व) सब (उल्कावत्) उल्काओं के समान ही (साधनं) साधन (सन्ध्यायाम्) सन्ध्याओं का लक्षण (अभिनिर्दिशेत् ) कहा (अतः ) अब (मेघानां ) मेघों का लक्षण ( परं) अच्छी तरह कहूँगा (तन्नि) उसको (बोधत) आप जानो ।
भावार्थ मैंने सब उल्काओं के समान ही सन्ध्याओं के लक्षण व फल कहे अब में मेघों का लक्षण व फल कहूँगा, उसको आप अच्छी तरह से जानो ।। २६ ।। विशेष- अब आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी सन्ध्याओं का स्वरूप कहते हैं। सूर्यके अर्ध अस्त होने के समय और जब तक आकाशमें तारा न दिखे उसके पहले सन्ध्या का समय बतलाया है, यह समय सूर्योदय के पूर्व व सूर्यास्त के समय का होता है इसी को सन्ध्या का काल माना है यह सन्ध्या भी अनेक वर्ण की होती है, इसका फलादेश भी वार, नक्षत्रों के व ग्रहों के अनुसार देखा जाता है।
सांयकाल की सन्ध्या यदि रक्त वर्ण की हो तो अच्छा माना है और अन्य वर्ण की हो तो कहीं शुभ और कहीं अशुभ फल देती है।
इन सन्ध्याओं से जय पराजय हानि, लाभ, सुख-दुःख इत्यादि देखे जाते है, प्रातः काल की सन्ध्या से अलग फल और सांयकाल को सन्ध्याओं का अलग-अलग फल होता है, इस सन्ध्या का फल अलग-अलग महीनों के अनुसार भी होता हैं, पदार्थों के भाव भी मालूम होते हैं, किंचित बादलों के प्रभाव से सन्ध्या फूलती है, अमुक महीने के अमुक दिन अमुक वर्ण की अमुक दिशा में वायु के साथ अगर सन्ध्या फूले तो उसका फल भी विशेष या साधारण होता है इन सन्ध्याओं का फल नाना प्रकार का होता है।