Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
मध्याह्न समयमें परिवेष दिखलाई पड़े तो साधारण फसल उत्पन्न होती है। इस तिथिको सोमवार पड़े तो पूर्णफल, मंगलवार पड़े तो प्रतिपादित फल से कुछ अधिक फल, बुधवार हो तो अल्प फल, गुरुवार को तो पूर्णफल, शुक्रवार हो तो सामान्यफल एवं शनिवार हो तो अधिक फल ही प्राप्त होता है। यदि आषाढ़ शुक्ला द्वितीया तिथिको पीतवर्णका मण्डलाकार परिवेष सूर्य के चारों ओर दिखलाई पड़े तो समयपर वर्षा श्रेष्ठ फसलकी उत्पत्ति, मनुष्य और पशुओंको सब प्रकारसे आनन्दकी प्राप्ति होती है। इस तिथिको त्रिकोणाकार, चौकोर या अनेक कोणाकार टेढ़ा-मेढ़ा परिवेष दिखलाई पड़े तो फसल में बहुत कमी रहती है। वर्षा भी समय पर नहीं होती तथा अनेक प्रकारके रोग भी फसलमें लग जाते हैं। सूर्य मण्डलको दो या तीन वलयोंमें वेष्टित करनेवाला परिवेष मध्यम फलका सूचक है। आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी या पंचमीको कृष्णवर्णका परिवेष सूर्यको चार घड़ी तक वेष्टित किये रहे तो आगामी ग्यारह दिनों तक सूखा पड़ता है, तेज धूप होती है, जिससे फसल के सभी पौधे सूख जाते हैं। इस प्रकारका परिवेष केवल बारह दिनों तक अपना फल देता है, इसके पश्चात् उसका फल क्षीण हो जाता है ।
आषाढ़ शुक्ला षष्ठी, अष्टमी और दशमीको सूर्योदय होते ही पीतवर्णका त्रिगुणाकार परिवेष चेष्टित करे तो उस वर्ष फसल अच्छी नहीं होती; वृत्ताकार आच्छादित करे तो फसल साधारणत: अच्छी; दीर्घ वृत्ताकार- -अण्डाकार या ढ़ोलकके आकार आच्छादित करे तो फसल बहुत अच्छी, चावलकी उत्पत्ति विशेष रूप में; चौकोर रूपमें आच्छादित करे तो तिलहनकी फसल और अन्य प्रकारकी फसलोंमें गड़बड़ी एवं पंच भुजाकार आच्छदित करे तो गन्ना, घी, मधु आदि की उत्पत्ति प्रचुर परिमाणमें तथा रूईकी फसल को विशेष क्षति होती है। दशमीको सूर्यास्त कालमें कृष्ण वर्णका परिवेष दिखलाई पड़े तो वर्षाका अभाव, फसलकी क्षति और पशुओंमें रोग फैलता है। षष्ठी और अष्टमीका फल जो उदयकालका है, वही अस्तकालका भी है। विशेषता इतनी ही है कि उक्त तिथियोंको अस्तकालीन परिवेष द्वारा प्रत्येक वस्तुकी उपज अवगत की जा सकती है। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और पूर्णिमाको दोपहरके पश्चात् सूर्यके चारों ओर परिवेष दिखलाई पड़े तो सुभिक्ष, -धान्य और तृणकी विशेष उत्पत्ति होती है। श्रावण मासका सूर्य परिवेष फसलके