Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
यदा
सृजति
भास्करः ।
सन्ध्यायमेकरश्मिस्तु उदितोऽस्तमितो चापि विन्द्याद् वर्षमुपस्थितम् ।। १६ ।।
( यदा) जब ( भास्करः ) सूर्य ( उदितोऽस्तमितो ) उदय या अस्त समय ( सन्ध्यायमेक) सन्ध्या एक (रश्मिस्तु) रश्मिवाला हो तो (सृजति) शोभा वाला हो तो (वर्ष) वर्षा की ( उपस्थितम् ) उपस्थित ( विन्द्याद्) जानो ।
भावार्थ- -जब सूर्य के उदय समय में या अस्त समय में सन्ध्या एक रश्मि बाली हो तो समझो शीघ्र ही वर्षा होने वाली है ।। १६ ।।
आदित्यपरिवेषस्तु सन्ध्यायां यदि वर्ष महद् विजानीयाद् भयं वाऽथ
दृश्यते ।
प्रवर्षणे ॥ १७ ॥
( सन्ध्यायां) सन्ध्या के समय (आदित्य) सूर्य के ऊपर (यदि) यदि (परिवेषस्तु ) परिवेष ( दृश्यते) दिखाई दे तो (महद् ) महान (वर्ष) वर्षा (विजानीयाद्) होगी ऐसा जानना चाहिये, ( वाऽथ ) अथवा ( भयं ) भयको ( प्रवर्षणे) वर्षा के समय उत्पन्न होगा।
त्रि मण्डलपरिक्षिप्तो यदि वा पञ्च संध्यायां दृश्यते सूर्यो महावर्षस्य
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भावार्थ- -सन्ध्या के समय में सूर्य के ऊपर यदि परिवेश दिखाई दे तो भारी वर्षा के साथ में जनना को बहुत ही भारी भय उत्पन्न होगा ॥ १७ ॥
मण्डलः ।
सम्भवः ॥ १८ ॥
( यदि ) यदि (त्रिमण्डल) तीन मण्डल (वा) वा (पञ्चमण्डलः) पाँच मण्डलसहित (परिक्षिप्तो) परिवेशसहित (सूर्यो) सूर्य ( सन्ध्यायां) सन्ध्या को (दृश्यते) दिखाई दे तो (महावर्षस्य ) महा वर्षा की ( सम्भव:) सम्भावना होती है।
भावार्थ-यदि सूर्य मण्डल के ऊपर सन्ध्या के समय में तीन मण्हल अथवा पाँच मण्डल सहित परिवेश हो तो समझो महा वर्षा होगी ॥ १८ ॥
द्योतयन्ती दिशः सर्वा यदा सन्ध्या प्रदृश्यते । महामेघास्तदा विन्द्यात् भद्रबाहुवचो
( यदा) जब ( सन्ध्या) सन्ध्या (सर्वा) सब ( दिश:) दिशा ( द्योतयन्ती ) उद्योत
यथा ।। १९ ।।