Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
स्निग्ध वर्णमती सन्ध्या वर्षदा सर्वशो सर्वा वीथिगता वाऽपि सुनक्षत्रा
भवेत् । विशेषतः ॥ १३ ॥
(स्निग्ध वर्णमती) स्निग्ध हो वर्ण वाली हो यदि (सन्ध्या) सन्ध्या तो (सर्वशो) सब प्रकार से ( वर्षदा) वर्षा करने वाली ( भवेत्) होती है (बाऽपि ) उनमें भी ( वीथिंगता) वीथिंगत और (विशेषतः) विशेषता से, (सर्वा) सब ( सुनक्षत्रा) सुनक्षत्र वाली हो तो वर्षा कराने वाली होती है।
भावार्थ - यदि सन्ध्या स्निग्धवर्ण वाली हो तो बरसात को करने वाली होती, उसमें भी विशेषकर वीथि में हो और सुनक्षत्र वाली हो तो बहुत बारिश कराने वाली होती है ॥ १३ ॥
पूर्वरात्रपरिवेषा
सविद्युत्परिखायुता । सरश्मी सर्वतः सन्ध्या सद्यो वर्ष प्रयच्छति ॥ १४ ॥ (पूर्वरात्रपरिवेषा) रात्रि के पिछले समय परिवेश से युक्त (सविद्युत्परिखायुता) बिजली से युक्त परिखा हो ( सरश्मी) रश्मियों से युक्त ( सर्वतः ) सब ( सन्ध्या ) सन्ध्या (सद्यो) नित्य ही ( वर्षं) बरसात को ( प्रयच्छति ) लाने वाली होती है।
भावार्थ — पूर्व रात्रि के पिछले प्रहर में परिवेश हो, बिजली भी परिखा से युक्त हो और सन्ध्या भी रश्मियों से युक्त हो तो समझो निकटकाल में शीघ्र ही वर्षा होगी ।। १४ ।
शक्रचापरजस्तथा ।
प्रतिसूर्यागमस्तत्र सन्ध्यायां यदि दृश्यन्ते सद्यो वर्षं प्रयच्छति ॥ १५ ॥
( प्रतिसूर्यागमस्तत्र ) प्रति सूर्यका आगमन हो वहाँ पर ( शक्रचाप) इन्द्र धनुष
( रजस्तथा ) धूली सहित ( सन्ध्यां ) सन्ध्या में (यदि) यदि (दृश्यन्ते) दिखाई दे तो, (सद्यो) सद्य ही (वर्ष) वर्षा को ( प्रयच्छति ) लाने वाली होती है।
भावार्थ — रज से युक्त इन्द्रधनुष प्रतिसूर्यके आगमन काल में सन्ध्याके समयमें दिखलाई पड़े तो समझो शीघ्र ही वर्षा होगी ।। १५ ।।