Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-यदि राजा के प्रयाण काल में बादल शुभ स्निग्ध होकर राजा के आगे.. भागे जाडे तो समझो राजा की युद्ध में विजय अवश्य होगी. ऐसी सूचना देते हैं।।९।।
स्थायुधानामश्वानां हस्तिनां सदृशानि च।
यान्यग्रतो प्रधावन्ति जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ।।१०।। बादल यदि (रथ) रथ, (अयुद्धानाम्) अयुद्ध (च) और (अश्वानां) घोड़े के हाथी के (सदृशानि) आकार होकर राजा के (न्यायग्रनो) आगे-आगे (प्रधावन्ति) चलते हैं दौड़ते हैं तो (जन्यमाख्यान्त्युपस्थितम्) राजा के विजय की सूचना करते
भावार्थ-- यदि बादल रथ के आकार होकर आयुद्धोहं के आकार जैसे—तलवार, भाला, बरछी, अंकुस, धनुष, बाणादिके आकार होकर अथवा घोड़ोंके आकार होकर अथवा हाथियोंके आकार होकर राजा के आगे-आगे दौड़ते हैं तो समझना चाहिये राजा की युद्ध में विजय होगी यह निमित्त राजा के युद्ध प्रयाण काल में होने चाहिये।।१०।।
ध्वजानां च पताकानां घण्टानां तोरणस्य च।
सदृशान्यग्रतो यान्ति जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ॥ ११॥
और भी (ध्वजानां) ध्वाजा के आकार (पताकानां) पताका के आकार (च) और (घण्टानां) घण्टेके आकार (च) और (तोरणस्य) तोरणों के (सदृशान्यग्रतो) आकार होकर आगे-आगे (यान्ति) चलते हैं तो (जयमाख्यान्त्य) राजा के जय को सूचित करते (उपस्थितम्) उपस्थित होते हैं।
भावार्थ-यदि बादल ध्वजाके आकार होकर पताकाके आकार होकर, घण्टाओं के आकार होकर तोरणों के आकार होकर राजा के आगे-आगे दौड़ते हुऐ, उपस्थित होते हैं तो समझो राजा की युद्ध में अवश्य विजय होगी ।। ११॥
शुक्लानि स्निग्धवर्णानि पुरत: पृष्ठतोऽपि वा।
अभ्राणि दीप्तरूपाणि जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ॥१२॥ (अभ्राणि) बादल, (शुक्लानि) सफेद, (वर्णानि) वर्णके और (स्निग्ध) स्निग्ध