Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
की विजय होगी ऐसा समझो यानि आक्रमणकारी राजा को उसी दिशा में युद्ध के लिये गमन करना चाहिये ।। २६ ॥
यदा तु धान्य सङ्घानां सदृशानि भवन्ति हि।
अभ्राणि तोयवर्णानि सस्यं तेषु समृद्धयते॥२७॥ (अभ्राणि) बादल (यदातु) यदि (धान्य संघानां) धान्य के (सदृशानि) समान (भवन्ति) होते है (हि) वा (तोय वर्णानि) पानी के रंग के हो तो (सस्य) धान्य की (तेषु) (समृद्धयते) बहुत वृद्धि होती है।
भावार्थ-यदि बादलों का रंग पानी के समान हो व धान्य के समान हो तो समझो वहाँ पर धान्य की वृद्धि होती है उस वर्ष धान्य की बहुत ही उत्पत्ति होगी ॥२७॥
विरागान्यनुलोमानि शुक्ल रक्तानि यानि च।
स्थावराणीति जानीयात् स्थावराणां च संश्रये ॥२८॥ यदि बादल (विरागान्यनुलोमानि) विरागी हो, अनुलोम मार्ग हो, (शुक्ल) सफेद (च) और (रक्तानि) लाल हो (स्थावराणीति) स्थिर हो तो समझो (स्थावराणां) स्थाई राजा (संश्रये) आश्रित होना चाहिये।
भावार्थ-यदि बादल, विरागी, अनुलोमी, सफेद और लाल उनमें भी स्थित हो तो समझो स्थाई राजा के आश्रित रहना चाहिये क्योंकि नगरस्थ राजा की युद्ध में विजय होगी ।। २८॥
क्षिप्रगानि विलोमानि नीलपीतानि यानि च।।
चला नीति विजानीयाच्चलानां च समागमे॥ २९॥ यदि बादल (क्षिप्रगानि) शीघ्रगामी हो, (विलोमानि) विलोममार्गी हो (च) और (नील) नीले (पीतानि) पीले हो तो, (चलानीति) आये हुऐ राजा का (चलानांच) स्थायी राजा के साथ (समागमे) समागम (विजानीयात्) जानना चाहिये।
भावार्थ-आकाश में यदि बादल शीघ्र गमन करने वाले प्रतिलोम मार्ग