Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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षष्ठोऽध्यायः
भावार्थ-मलिन और विवर्ण बादल सूर्य के ऊपर स्थित हो जाय तो समझो वहाँ पर महान भय उपस्थित होगा।॥ २३॥
सग्रहे चापि नक्षत्रे ग्रहयुद्धेऽशुभे तिथौ।
सम्भ्रमन्ति यदाऽभ्राणि तदा विन्द्यान्महद् भयम् ।। २४ ।। (सग्रहे) ग्रह से सहित (चापि) और भी (नक्षत्रे) नक्षत्रों के समय में (ग्रह युद्धे) ग्रहों के युद्ध समय में (अशुभे) अशुभ (तिथौ) तिथीयों में (यदाऽभ्राणि) जब बादल (सम्भ्रमन्ति) भ्रमण करते दिखाई दे तो (तदा) तब (महद् भयम्) महान भय को (विन्द्यात्) जानो।
भावार्थ-अशुभ ग्रहों से सहित नक्षत्र हो, ग्रह युद्ध हो अशुभ तिथी हो और यदि बादल भ्रमण करे तो समझो महान भय होगा॥२४॥
मुहूर्ते शकुने वापि निमित्ते वाऽशुभे यदा।
सम्भ्रमन्ति यदाऽभ्राणि तदा विन्द्यान्महद्भयम् ।। २५ ।।
उसी प्रकार (ऽशुभेयदा) जब अशुभ (मुहूर्ते) मुहूर्त हो, (शकुने) शकुन हो (वापि) और भी (निमित्ते) निमित्त हो और (यदाऽभ्राणि) जब बादल (सम्भ्रमन्ति) घुमे तो (तदा) तब (महद् भयम्) महान भय को (विन्द्यात्) जानो।
भावार्थ उसी प्रकार जब अशुभ मुहूर्त, शकुन निमित्त हो और बादलों का भ्रमण दिखाई दे तो समझो वहाँ पर महान भय होगा।॥ २५॥
अभ्रशक्तिर्यतो गच्छेत् तां दिशां चाभियोजयेत् ।
विपुला क्षिप्रगा स्निग्धा जयमाख्याति निर्भयम् ॥ २६॥ (अभ्र) बादल जिस दिशा में (शक्तिर्यतो) शक्तिमान होकर (विपुला) बहुत मात्रा में (स्निग्धा) स्निग्ध होकर (क्षिप्रगा) शीघ्र (गच्छेत्) जावे तो (तां) उसी (दिशां) दिशा में (चाभियोजयेत्) योजना करनी चाहिये, शत्रु राजा की (जयमाख्याति) जय कराती है (निर्भयम्) निर्भय होकर।
भावार्थ—यदि बादल शीघ्र गमन करे, स्निग्ध हो और विपुल प्रमाण में हो, शक्ति से जाते हुऐ जिस दिशा में दिखे उसी दिशा में आक्रमणकारी राजा