Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
दिशा में गड़गड़ाहट के साथ चमके तो निश्चयतः अगले तीन दिनों तक वर्षा का अवरोध होता है। आकाशमें बादल छाये रहते हैं, फिर भी जल की वर्षा नहीं होती । कृष्णवर्णक बादलोंमें पश्चिम दिशासे पीतवर्णकी विद्युत् धारा प्रवाहित हो और यह अपने तेज प्रकाशके द्वारा आँखोंमें चकाचौंध उत्पन्न कर दे तो वर्षाकी कमी समझनी चाहिए। वायुके साथ बूँदा-बूंदी होकर ही रह जाती है। धूप भी इतनी तेज पड़ती है, जिससे इस बूँदा- बूँदीका भी कुछ प्रभाव नहीं होता। पश्चिमसे बिजली निकल कर पूर्वकी ओर जाय तो प्रातः काल कुछ वर्षा होती है और इस वर्षाका जल फसलके लिए अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध होता है। फसलके लिए इस प्रकार की बिजली उत्तम समझी गई है।
उत्तर दिशामें बिजली चमके तो नियमतः वर्षा होती है । उत्तरमें जोर-जोरसे कड़कके साथ बिजली चमके और आकाश मेघाच्छन्न हो तो प्रातः काल घनघोर वर्षा होती है। जब आकाशमें नीलवर्णके बादल छाये हों और इनमें पीतवर्णकी बिजली चमकती हो तो साधारण वर्षाके साथ वायुका भी प्रकोप समझना चाहिए। जब उत्तरमें केवल मन्द मन्द शब्द करती हुई बिजली कड़कती है, उस समय वायु चलनेके की सूचना समझनी चाहिए। हरे और पीले रंगके बादल आकाशमें हों तथा उत्तर दिशामें रह-रहकर बार-बार बिजली चमकती हो तो जल वर्षाका योग विशेषरूप से समझना चाहिए। यह वृष्टि उस स्थानसे सौ कोशकी दूरी तक होती है तथा पृथ्वी जलप्लावित हो जाती है। लालवर्णके बादल जब आकाशमें हों, उस समय दिनमें बिजलीका प्रकाश दिखलाई पड़े तो वर्षाके अभावकी सूचना अवगत करनी चाहिए। इस प्रकारकी बिजली दुष्काल पड़नेकी सूचना भी देती है। यदि उक्त प्रकारकी बिजली आषाढ़ मासके आरम्भमें दिखलाई पड़े तो उस वर्ष दुष्काल समझ लेना चाहिए। वायव्य कोणमें बिजली कड़ाकके शब्दके साथ चमके तो अल्प जलकी वर्षा समझनी चाहिए। वर्षाकालमें ही उक्त प्रकारकी बिजली का निमित्त घटित होता है। ईशान कोणमें तिरछी चमकती हुई बिजली पूर्व दिशाकी ओर गमन करे तो जलकी वर्षा होती है। यदि इस कोणकी बिजली गर्जन - तर्जनके साथ चमके तो तूफानकी सूचना समझनी चाहिए। आषाढ़ मास और श्रावणमासमें उत्तम प्रकारकी विद्युत्का फल घटित होता है।
दक्षिण दिशामें बिजलीकी चकाचौंध उत्पन्न हो और श्वेत रंगकी चमक दिखलाई